Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 159
________________ पत्र न.2 पूज्यपाद गीतार्थ गच्छाधिपति आचार्य देवेश श्रीविजयजयघोषसूरीश्वरजी म.सा. आदि ठाणा यथायोग्य वन्दन/अनुवंदन स्वीकारें। आप श्री का वपुरत्न रत्नत्रय की आराधना शासन प्रभआवना के अनुकूल होगा / देव गुरु कृपा एवं आपश्री के असीम अनुग्रह से अत्र सर्व कुशल मंगल वर्त रहा है। वर्षावास का प्रत्येक आयोजन स्व- पर कल्याणार्थ सिद्ध हुआ होगा। आपश्री की निश्रा में अपूर्व आनंद वर्त्त रहा होगा। वर्षावास प्रारंभ में श्रावण वदि पक्ष में एक पत्र आपश्री की सेवा प्रेषित किया था। उस पत्र का विषय था ‘सवेगरंगशाला' के कर्ता अर्हन्नीति के उन्नायक खरतरगच्छीय आचार्यश्री जिनचंद्रसूरि को प्र. प्रशांत वल्लभ विजयजी के द्वारा पाप पडल परिहरों में तपागच्छीय उल्लेखित करना। इस विषय से सम्बन्धित प्रमाणिक प्रमाण भिजवाएँ थे। उसका प्रत्युत्तर अभी भी अपेक्षित है। इस पत्र के साथ लेखक पण्डित लालचंद्र भगवान गांधी बड़ौदा वालों का लेख श्रीजिनचंद्रसूरिजी की श्रेष्ठ रचना ‘संवेगरंगशाला आराधना' भिजवा रहे हैं। उन्होंने भी ऐतिहासिक प्रमाणों से सिद्ध करके कहा है कि संवेगरंगशाला के रचनाकार श्री जिनचन्द्रसूरि खरतरगच्छीय है। उन्होंने इस लेख के पेज नं. 12 पर लिखा है कि आचार्यदेव विजय मनोहरसूरि के शिष्य श्री हेमेन्द्रविजयजी ने श्री जिनचंद्रसूरि के साथ तपागच्छीय विशेषण लगाया है। जो अप्रमाणिक है। ___ पूज्यवर आपश्री जैसे गीतार्थ आचार्य प्रवर के श्रीचरणों में करबद्ध निवेदन है कि इस तरह के अनुचित अप्रमाणिक असत्य इतिहास के विरुद्ध आप श्री की न्यायसंगत कार्यवाही की जरुरत है। ताकि सभी गच्छ /परंपरा के आपसी समन्वय, सौहार्दमय भावनाएँ सदैव विकसित होती रहे। अनुचित/अन्यथा लिखने में आया है तो मिच्छामि दुक्कडं! पूर्व व वर्तमान पत्र के प्रत्युत्तर की प्रतीक्षा को अविलंबता से पूर्ण करोगे। स्वाध्याय की प्रसादी जरुर भिजवाएँ। पुनश्च सुखशाता पृच्छा ! सहवर्ती चारित्रात्माओं को यथायोग्य वन्दनानुवन्दना। शेष शुभ ! जिन महोदय सागर सूरि चरणरज स्थल- अजमेर (दादावाड़ी) 22-10-2016 जिन पीयूषसागर सूरि इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /159

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