Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran
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________________ प्रबन्धों-निबन्धों का सार उद्धत किया है, उससे उनके चरित के दो भाग दिखाई पड़ते हैं-एक उनकी पूर्वावस्था का और दूसरा दीक्षित होने के बाद का। पूर्वावस्था के चरित के सूचक प्रभावक चरित आदि जिन भिन्न-भिन्न 3 आधारों का हमने सार दिया है, उससे ज्ञात होता है कि वे परस्पर विरोधी हो कर असंबद्ध से प्रतीत होते हैं। इनमें सोमतिलकसूरि कथित धनपालकथा वाला जो उल्लेख है यह तो सर्वथा कल्पित ही समझना चाहिये। क्योंकि धनपाल ने स्वयं अपनी प्रसिद्ध कथा-कृति 'तिलकमञ्जरी' में अपने गुरु का नाम महेन्द्रसूरि सूचित किया है और प्रभावक चरित में भी उसका यथेष्ट प्रमाणभूत वर्णन मिलता है। इसलिये धनपाल और शोभन मुनि का जिनेश्वर सूरि को मिलना और उनके पास दीक्षित होना आदि सब कल्पित है। मालूम देता है सोमतिलकसूरि ने धनपाल की कथा और जिनेश्वर सूरि की कथा, जो दोनों भिन्न-भिन्न हैं, उनको एकमें मिलाकर इन दोनों कथाओं का परस्पर संबंध जोड़ दिया है जो सर्वथा अनैतिहासिक है। __ वृद्धाचार्य प्रबन्धावलि में, जिनेश्वरसूरि की सिद्धपुर में सरस्वती के किनारे वर्धमानसूरि से भेंट हो जाने की जो कथा दी गई है, वह भी वैसी ही काल्पनिक समझनी चाहिए। प्रभावकचरित की कथा का मूलाधार क्या होगा सो ज्ञात नहीं होता। इसमें जिस ढंग से कथा का वर्णन दिया है, उससे उसका असंबद्ध होना तो नहीं प्रतीत होता। दूसरी बात यह है कि प्रभावकचरितकार बहुत कुछ आधारभूत बातों-हीका प्रायः वर्णन करते हैं। उन्होंने अपने ग्रंथ में यह स्पष्ट ही निर्देश कर दिया है कि इस ग्रंथ में जो कुछ उन्होंने कथन किया है उसका आधार या तो पूर्व लिखित प्रबन्धादि है या वैसी पुरानी बातों का ज्ञान रखने वाले विश्वस्त वृद्धजन हैं। इसमें से जिनेश्वर की कथा के लिये उनको क्या आधार मिला था इसके जानने का कोई उपाय नहीं है। संभव है वृद्धपरंपरा ही इसका आधार हो। क्योंकि यदि कोई लिखित प्रबन्धादि आधारभूत होता तो उसका सूचन हमें उक्त सुमतिगणि या जिनपालोपाध्याय के प्रबन्धों में अवश्य मिलता / इन दोनों ने अपने निबन्धों में इस विषय का कुछ भी सूचन नहीं किया है इससे ज्ञात होता है कि जिनेश्वरकी पूर्वावस्था के विषय में कुछ विश्वस्त एवं आधारभूत वार्ता उनको नहीं मिली थी। ऐसा न होता तो वे अपने निबन्धों में इसका सूचन किये बिना कैसे चुप रह सकते थे। क्योंकि उनको तो इसके उल्लेख करने का सबसे अधिक आवश्यक और इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /033