Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 72
________________ क्र. 256 1 जैन ताडपत्रीय ग्रंथभंडार सूचीपत्र ॥प्रख्याते विमलेऽत्र धर्कटकुले यस्योन्नतिः शर्मदा वांछातीतवितीर्णदाननिकरप्रीतार्थिकल्पद्रुमः / आधिव्याधिनिरस्तमानरागतिः सर्वज्ञधर्म रतिः स श्रीमान् सुमतिर्बभूव सुमतिस्तस्याम्रवीरात्मजः // 1 // अम्बेश्वरस्तस्य सुतः प्रतीतो गांभीर्यमाधुर्यगुणैरगाधः / दानादिधर्मेषु विवृद्धचेता धुर्यो हि यो धर्ममहारथस्य // 2 // अम्बेश्वरस्य चत्वारः पुत्राः सन्ततिशालिनः / उपया इव भूभर्तुर्बभूवुरुदयोन्मुखाः // 3 // आद्यस्तेषां शालिगः साधुवृत्तः स्फीतः पुण्यैः पावदेवो द्वितीयः / सूमाकः श्रीसौम्यमूर्तिस्तृतीयो वर्यस्तुर्यो स्याद् यशोवीरनामा // 4 // शालिगस्य च चत्वारः पुत्राः प्राज्यगुणान्विताः। वरदेवो(व.) कालकोऽथ वीरडश्च तथाऽम्बडः // 5 // लीनं यशोवीरमनो जिनेन्द्रे *लाध्ये च संघे विशदातिभक्तिः / सुधानिधानं वचनं यदीयं परोपकारैकरसं वपुश्च // 6 // यशोवीरस्य षट पुत्राः षडगुणा इव विश्रुताः। शोल्लिकायां महासत्यां नीतौ जन्माऽऽपुरद्भुतम् // 7 // तदाद्यो बोहडिः श्रेष्ठी द्वितीयो राउतस्ततः / तृतीयो गांगदेवस्तु चतुर्थो देल्हकः सुधीः // 8 // पंचमो धांधुकस्तेषु षष्ठः षोषन इत्यमी / सर्वेऽप्यवृजिना धर्मकर्मण्युद्यतमानसाः // 9 // बोहडिप्रेयसी देविण्यभूदु युवतिमंडनम् / आम्रसीहः सुतस्तस्याः पौत्रो धीणिग इत्यथ // 10 // राजपुत्रस्य षट् पुत्रा राहू-मोहिणिसंभवाः। आमणो वोडसिहोऽभयडो नउलकस्तथा // 11 // सेवाको मोहणश्चाथ शान्ती वाजू सुते शुमे / सेवाप्रिया भोपला तु करला कालकस्य च // 12 // शतपत्राभिधग्रामे वोहडिप्रमुखः सुतः / नेमिश्रीपाश्वयोबिबे पित्रोः पुण्याय कारिते // 13 // अभयडस्य लक्ष्मश्रीः प्रिया पुत्रश्च गोल्हणः / मुलदेवोऽपरः सीलू पुत्री राउतसन्ततौ // 14 // प्राचीनसीतादिसतीगणस्य मध्ये ययाऽऽत्मा विहितः स्वशुद्धया / सा सूमिणिदल्हुकगेहलक्ष्मीरभूत् पुनश्चापलतां न भेजे // 15 // तस्याश्चतस्रस्तनया बभूवुरुन्निद्रशीलाभरणप्रकाशाः / यासां ध्वनिः श्रोत्रपुटैनिपीय सौहित्यमापुः पशवोऽनभिज्ञाः // 16 // आधे चंपलचाहिण्यौ गीतविज्ञानकोविदे। अन्ये सोहिणिमोहिण्यावेताः कस्य मुदाय न // 17 // धांधकस्य प्रिया पातू संतानी नैव सोऽभवत् / षोषनस्य प्रिया लाडी पंच पुत्राः सुताद्वयम् // 18 // साहणः प्रथमः पुत्रस्तथा धरणिगोऽपरः। यशोधवलस्तृतीयस्तु खीमसिंहश्चतुर्थकः // 19 // पंचमो भीमसिंहोऽथ लारूपलपुत्रिके। षोषनस्य बभूवेयं संततिः शुभशालिनी // 20 // इतश्च देल्हुकसुता प्रागुक्ता प्रथमोद्भवा। पित्रोः श्रेयोऽर्थमत्यर्थ धर्मकर्मणि सा वरा // 21 // आबाल्यात् कुमुदेन्दुकांतिविशदं यच्छीलमापालितं यद्भक्तिस्त्रिजगत्प्रतीतमहसि श्रीवीतरागेऽधिका। यत्पूजा च चतुर्विधे भगवति श्रीसंघभट्टारके तेनेयं विशदान्वयेति सुदती संलक्ष्यते चांपला // 22 // तया तु छत्रापल्लीयश्रीपद्मप्रभसूरितः। देशनामृतमाकर्ण्य वैराग्योत्सुकयाऽधिकम् // 23 // स्वभुजार्जितवित्तेन श्रीपार्श्वप्रतिमा गृहे। कारिता सुव्रतस्येदं चरित्रं लेखितं तथा // 24 // पूर्वोक्तबिंबयोः पावे श्रीयुगादिजिनालये। श्रीमहावीरबिंबं च कारितं सपरिच्छदम् // 25 // उदधिखवह्निक्षितिजे 1304 नृपविक्रमवत्सराद् गते वर्षे / परिपूर्णमिदं जातं सद्गुरूणां प्रसादतः ॥२६॥कुलकम्।। चंद्रार्कावुदयं यावत् कुरुतः प्रतिवासरम् / मेदिनी विद्यते यावत् तावन्दतु पुस्तकः // 27 // __प्रशस्तिः समाप्तेति / * इसमें 'छत्रापल्लीय पद्मप्रभसूरितः' ऐसा उल्लेख है, जो छत्रा पल्लीय गच्छ को सूचित करता - संपादक ( इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /072

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