Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran
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________________ जस्सऽज वि सुमरंतो लोगो रोमंचमुव्वहइ।। तस्साऽऽसि दोन्नि सीसा जयविक्खाया दिवायर-ससिव्व। आयरियजिणेसर-बुद्धिसागरायरियनामाणो।। तेसिं च पुणो जाया सीसा दो महियलम्मि सुपसिद्धा। जिणचंदसूरिनामो बीओऽभयदेवसूरि त्ति।।" इन दोनों में भी चान्द्रकुल का ही उल्लेख किया है। जिनेश्वरसूरिजी को 'खरतर' बिरुद मिलने का बिलकुल निर्देश नहीं किया है। 20.अभयदेवसूरिजी के शिष्य वर्धमानसूरिजी ने सं. 1140 में 'मनोरमाकहा' की रचना की थी। उसकी प्रशस्ति में इस प्रकार के श्लोक हैं‘एवं सूरीण परंपराए ता जाव अज्जवइरो त्ति। साहाए तस्स विमले चंदकुले चंदसमलेसो।।1215।। अप्पडिबद्धविहारो सूरी सोमोव्व जणमणाणंदो। आसि सिरिवद्धमाणो पवड्डमाणो गुणगणेहिं।।1216।। सूरिजिणेसर-सिरिबुद्धिसागरा सागर व्व गंभीरा। सुरगुरुसुक्कसरिच्छा सहोयरा तस्स दो सीसा।।1217।। ताण विणेओ सिरिअभयदेवसूरि त्ति नाम संजाओ। विजियक्खो पच्चक्खो कयविग्गहसंगहो धम्मो।।1219।। 21. उन्होंने ही सं. 1160 में 'ऋषभदेवचरित्र' की रचना की थी। उसकी प्रशस्ति इस प्रकार है:चंदकुले चंदजसो दुक्करतवचरणसोसिअसरीरो। अप्पडिबद्धविहारो सूरुव्व विणिग्गयपयावो।।1।। एणपरिग्गहरहिओ विविहसारंगसंगहो निच्चं। सयलक्खविजयपयडोऽवि एक्कसंसारभयभीओ।।2।। इंदिअतुरिअतुरंगमवसिअरणसुसारही महासत्तो। धम्मारामुल्लूरणमणमक्कडरूद्धवावाचारो।।3।। खमदमसंजमगुणरोहणो विजिअदुज्जयाणंगो। ( इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /106 )