Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran
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________________ इस संदर्भ ग्रंथ में ‘खरतर' बिरुद प्रदान की बात ही नहीं लिखी है। महो. विनयसागरजी ने 'खरतरगच्छ के बृहद् इतिहास' में इसका पूरा अनुवाद किया है, उसमें वाद विजय एवं वसति-मार्ग स्थापन का पृ. 7 पर अनुवाद दिया है। देखिये इस प्रकार इस पद्य का अर्थ राजा को सुनाया। राजा ने पूछा-'आप कहाँ निवास करते हैं?' सूरिजी ने कहा- 'महाराज! जिस नगर में अनेक विपक्षी हों, वहाँ स्थान की प्राप्ति कैसी?' उनका यह उत्तर सुनकर राजा ने कहा-'नगर के करडि हट्टी नामक मुहल्ले में एक वंशहीन पुरुष का बहुत बड़ा घर खाली पड़ा है, उसमें आप निवास करें।' राजा की आज्ञा से उसी क्षण वह स्थान प्राप्त हो गया। राजा ने पूछा-'आपके भोजन की क्या व्यवस्था है?' सूरिजी ने उत्तर दिया'महाराज! भोजन की भी वैसी ही कठिनता है।' राजा ने पूछा- आप कितने साधु हैं?' सूरिजी ने कहा-'अठारह साधु हैं।' राजा ने पुनः कहा- 'एक हाथी की खुराक में आप सब तृप्त हो सकेंगे?' तब सूरिजी ने कहा- 'महाराज! साधुओं को राजपिण्ड कल्पित नहीं है। राजपिण्ड का शास्त्र में निषेध है।' राजा बोला-'अस्तु, ऐसा न सही। भिक्षा के समय राज कर्मचारी के साथ रहने से आप लोगों को भिक्षा सुलभ हो जायेगी।' फिर वाद-विवाद में विपक्षियों को परास्त करके राजा और राजकीय अधिकारी पुरुषों के साथ उन्होंने वसति में प्रवेश किया। इस प्रकार प्रथम ही प्रथम गुजरात में वसति मार्ग की स्थापना हुई। ___ इस संदर्भ ग्रंथ में ‘खरतर' बिरुद प्रदान की बात ही नहीं लिखी है तथा स्वयं जिनपीयूषसागरसूरिजी की ‘खरतरगच्छ का उद्भव' पृ. 5 से 13 तक में इसका अनुवाद दिया है। उसमें भी खरतर बिरुद की बात नहीं लिखी है। वाद-विजय एवं वसतिमार्ग स्थापना विषयक अनुवाद इस प्रकार दिया है कि-"विवाद-विवाद में विपक्षियों को परास्त करके अन्त में राजा और राजकीय अधिकारी पुरुषों के साथ वर्धमान सूरिजी, जिनेश्वरसूरिजी आदि ने सर्वप्रथम गुजरात में वसति में प्रवेश किया और सर्वप्रथम गुजरात में वसति-मार्ग (युगप्रधानाचार्य-गुर्वावली, पृ. 3) की स्थापना हुई। इस प्रकार गुर्वावली का पूरा संदर्भ देकर जिनपीयूषसागरसूरिजी पृ.14 पर लिखते हैं “जिनेश्वरसूरिजी की स्पष्टवादिता, आचार-निष्ठा तथा प्रखर तेजस्विता को इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /113