Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran
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________________ ये आचार्य किस गच्छ एवं किस शाखा के थे? शिलालेख में कुछ भी नहीं लिखा है। 'संवत् 1281 वैशाख सुदि 3, शनौ पितामह श्रे. साम्ब पितृ श्रे. जसवीर मातृ लाष एतेषां श्रेयोऽर्थं सुत गांधी गोसलेन बिंबं कारितं प्रतिष्ठितञ्च श्री चन्द्रसूरि शिष्यः श्री जिनेश्वर सूरिभिः।।' आ. बु. धातु ले. सं. लेखांक 627 ये आचार्य शायद् जिनपतिसूरि के पट्टधर हो,इनके समय तक की खरतर शब्द का प्रयोग अपमान बोधक होने से नहीं हुआ था। 'सं. 1351 माघ वदि 1 श्रीप्रल्हादनपुरे श्रीयुगादि देवविधि चैत्य श्रीजिनप्रबोधसूरि शिष्य श्री जिनचंद्र सूरिभिः श्रीजिनप्रबोधसूरि मूर्ति प्रतिष्ठा कारिता रामसिंह सुताभ्यां सा. नोहा कर्मण श्रावकाभ्यां स्वामातृ राई मई श्रेयोऽर्थं।' आ. बु. धातु ले. सं. लेखांक 734 ये आचार्य जिनदत्तसूरि के पाँचवे पट्टधर थे। इनके समय तक भी खरतर शब्द को गच्छ का स्थान नहीं मिला था। 'ॐ सम्वत् 1379 मार्ग. वदि 5, प्रभु जिनचंद्रसूरि शिष्यैः श्रीकुशलसूरिभिः श्रीशान्तिनाथ बिंबं प्रतिष्ठित कारितञ्च सा. सहजपाल पुत्रैः सा. धाधल गयधर थिरचंद्र सुश्रावकैः स्वपितृ पुण्ययार्थ।।' बाबू पूर्ण खण्ड तीसरा लेखांक 2389 'ॐ सं. 1381 वैशाख वदि 5 श्री पत्तने श्री शांतिनाथ विधि चैत्ये श्री जिनचंद्रसरि शिष्यैः श्री जिनकुशलसूरिभिः श्री जिनप्रबोधसूरि मूर्ति प्रतिष्ठा कारिता च सा. कुमारपाल रतनैः सा. महणसिंह सा. देपाल सा. जगसिंह सा. मेहा सुश्रावकैः सपरिवारैः स्वश्रेयोऽर्थम्।।' ___ बाबू पूर्ण खण्ड दूसरा लेखांक 1988 'सम्वत् 1391 मा. श्री. 15 खरतरगच्छीय श्री जिनकुशल सूरि शिष्यैः जिनपद्मसूरिभिः श्री पाश्वनार्थ प्रतिमा प्रतिष्ठिता कारिता च भव. बाहिसुतेन रत्नसिंह पुत्र आल्हानादि परिवृतेन स्वपितृ सर्व पितृव्य पुण्यार्थ।।' बाबू पूर्ण खण्ड दूसरा लेखांक 1926 ( इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /117 )