Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran

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Page 74
________________ विविधतीर्थकरूपे 13. अयोध्यानगरीकल्पः। अउज्झाए एगट्ठिआई जहा-अउज्झा अवज्झा कोसला विणीया साकेयं इक्खागुभूमी रामपुरी कोसल ति। एसा सिरिउसभ-अजिअ-अभिनंदण-सुमइ-अणंतजिणाणं तहा नवमस्स सिरिवीरगणहरस्स अयलभाउणो जम्मभूमी / रहुवंसुब्भवाणं दसरह-राम-भरहाईणं च रजहाणं / विमल5 वाहणाइसत्तकुलगरा इत्थ उप्पन्ना / उसभसामिणो रजाभिसेए मिहुणगेहिं भिसिणीपत्तेहिं उदयं पित्तुं पाएसु छूढं / तओ साहुविणीया पुरिस ति भणि सक्केण / तओ विणीय त्ति सा नयरी रूढा / जत्थ य महासईए सीयाए अप्पाणं सोहंतीए निअसीलबलेण अग्गी जलपूरीकओ। सो अ जलपूरो नयार बोलितो निअमाहप्पेण तीए चेव रक्खिओ। जा य अङ्कभरहवसुहागोलस्स मज्झभूआ सया, नवजोअणवित्थिण्णा बारसजोअणदीहा य / जत्थ चक्केसरी रयणमयायणट्ठिअपडिमा संघविन्, हरेइ, गोमुहजक्खो अ / जत्थ घग्घरदहो सरऊनईए समं मिलित्ता सग्गदुबारं ति पसिद्धिमावन्नो। जीए उत्तरदिसाए बारसहिं जोअणेहिं अट्ठावयनगवरो जत्थ भगवं आइगरो सिद्धो / जत्थ य भरहेसरेण सीहनिसिजाययणं तिकोसुच्चं कारिअं / निय-नियवण्णपमाणसंठाणजुत्ताणि अ चउवीसजिणाण बिंबाई 15 ठावियाई / तत्थ पुधदारे उसभ-अजिआणं; दाहिणबारे संभवाईणं चउहं; पच्छिमदुवारे सुपासाईणं अट्टहं; उत्तरदुवारे धम्माईणं दसण्ठं; थूभसयं च भाउआणं तेणेव कारि। . जीए नयरीए वत्थवा जणा अट्ठावयउवच्चयासु कीलिंसु / जओ अ सेरीसयपुरे नवंगवित्तिकारसाहासमुन्भवेहिं सिरिदेविंदसूरीहिं चचारि महाबिंबाई दिवसचीए + गयणमग्गेण आणीआई। 20 जत्थ अज्ज वि नाभिरायस्स मंदिरं / जत्थ य पासनाहवाडिया सीयाकुंड सहस्सधारं च / पायारहिओ अ मत्तगयंद'जक्खो / अज्ज वि जस्स अग्गे करिणो न संचरंति, संचरंति वा ता मरति / गोपयराईणि अ अणेगाणि य लोइअतित्थाणि वदृति / एसा पुरी अउज्झा सरऊजलसिच माणगढभित्ती / जिणसमयसत्चतित्थीजत्तपवित्तिअजणा जयइ // 1 // कहं पुण देविंदसूरीहिं चचारि बिंबाणि अउज्झापुराओ आणीयाणि ति भण्णइ-सेरीसयनयरे विह25रंता आराहिअपउमावह-धरणिंदा छत्तावल्लीयसिरिदेविंदसरिणो उकरुडिअपाए ठाणे काउर एवं बहुवारं करिते ते सावएहिं पुच्छिअं-भयवं! को विसेसो इत्थ काउस्सम्गकरणे। सूरीहिं भणियं-इत्थ पहाणफलही चिट्ठइ, जीसे पासनाहपडिमा कीरइ; सा य सन्निहियपाडिहेरा हवइ / तओ सावयवयणेणं पउमावईआराहणत्थं उववासतिगं कयं गुरुणा / आगया भगवई / तीए आइलैं / जहा-सोपारए अन्धो सुत्तहारो चिट्टइ।। सो जह इत्थ आगच्छइ अट्ठमभत्रं च करेइ, सूरिए अत्थमिए फलहिअं घडेउमाढवइ, अणुदिए पडिपुण्णं संपाडेह, 30 तओ निप्पजद / तओ सावएहिं तदाहवणत्थं सोपारए पुरिसा पट्ठविआ / सो आगओ / तहेव घडिउमाढता। धरिणिन्दधारिआ निप्पन्ना पडिमा / घडिन्तस्स सुचहारस्स पडिमाए हिअए मसो पाउब्भूओ / तमुविक्खिऊण उत्तरकाओ घडिओ। पुणो समारितेण गसो दिट्ठो / टङ्किआ वाहिआ / रुहिरं निस्सरिउमारद्धं / तओ सूरिहिं भणि-किमेयं तुमए कयं? / एयमि मसे अच्छन्ते एसा पडिमा अईवअब्भुअहेऊ सप्पभावा हुन्ता / तओ अङ्ग 1 'जिणाणं' नास्ति / 2 C D मइंद। 3 C D जलाभिसिश्च / 4C.पए। * इसमें देवेंद्रसूरिजी के लिए "नवंगवित्तिकारसाहा समुब्भवेहिं” तथा “छत्रावल्लीय' ऐसे दो विशेषण दिये हैं, जिससे स्पष्ट होता है कि अभयदेवसूरि संतानीय और छत्रापल्लीयगच्छ - संपादक इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /074 एक है।

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