Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran
View full book text ________________ 104 विविधतीर्थकरपे - 59. स्तम्भनककल्पशिलोञ्छः / धंभणयकप्पमज्झे जं संगहि न वित्थरभएण / तं सिरिजिणपहसूरी सिलुंछमिव कं पि' जंपेइ // 1 // ढंकपव्वए रणसीहरायउत्तस्स भोपलनामिअं धूअं रूवलावण्णसंपन्नं दद्दूण जायाणुरायस्स तं सेवमाणस्स वासुगिणो पुत्तो नागजुणो नाम जाओ / सो अ जणएण पुत्तसिणेहमोहिअमणेण सबासि महोसहीणं फलाई 5 मूलाई दलाई च भुंजा विओ। तप्पभावेण सो महासिद्धीहिं अलंकिओ 'सिद्धपुरिसुत्ति विक्खाओ पुहविं विअरंतो सालाहणरन्नो कलागुरू जाओ / सो अ गयणगामिणिविज्जाअज्झयणत्थं पालित्तयपुरे सिरिपालित्तायरिए सेवेइ / अन्नया भोयणासरे पायप्पलेवबलेण गयणे उप्पइए पासइ / अट्ठावयाइतित्थाणि नमंसिअ सट्टाणमुवागयाण तेसिं पाए पक्खालिऊण सत्तुत्तरसयमहोसहीणं आसायण-वण्ण-गंधाईहिं नामाइं निच्छइऊण गुरूवएसं विणावि पायलेवं काउं कुक्कुडप्पोउ व उप्पयंतो अक्डतडे निवडिओ। वणजज्जरि अंगो गुरूहि पुट्ठो-किमेअंति! / तेण 10 जट्ठिए वुत्ते तस्स कोसल्लचमक्किअचित्ता आयरिआ तस्स सिरे पउमहत्थं दाउं भगंति-सटिअतंदुलोदगेण ताणि ओसहाणि वट्टित्ता' पायलेवं काउं गयणे वच्चिजासि ति / तओ तं सिद्धिं पाविअ परितुट्टो / पुणो कयावि गुरुमुहाउ सुणेई, जहा-सिरिपासनाहपुराओ साहिज्जतो सबइत्थीलक्खणोवलक्खिअमहासईविल्याए अ मद्दिजंतो स्सो कोडिवेही हवइ / तं सोऊण सो पासनाहपडिमं अन्नेसिउमारद्धो / इओ अ बारवईए समुहविजयदसारेण सिरिनेमिनाहमुहाओ महाइसय नाऊण रयणमई सिरिपासनाहपडिमा पासायमि ठवित्ता पूईआ। बारवईदाहाणंतरं समुद्देण पाविआ सा पडिमा तहेव समुहमज्झे ठिआ। कालेण कंतीवासिणो धणवइनामस्स संमत्तिअस्स जाणवत्तं देवयाइसयाओ खलिअं / इत्थ जिणबिंब चिट्ठइ त्ति दिबवायाए निच्छि। नादिए तत्थ पक्खिविअ सत्तहिं आमतंतहिं संदाणि उद्धरिआ पडिमा / निअनयरीए नेऊण पासायमि ठाविआ। चिंताइरित्तलाभपहिट्टेण पूइज्जइ पइदिणं / तओ सबाइसाइ तं बिंब नाऊण नागझुणो सिद्धरससिद्धिनिमित्तं अवहरिऊण सेडीनईए तडे ठाविसु / तस्स पुरओ रससाहंणत्थं सिरिसालवाहणरन्नो चंदलेहाभिहाणि महासई देविं 20 सिद्धवंतरसन्निज्झेण तत्थ आणाविअ पइनिसं रसमद्दणं कारेइ / एवं तत्थ भुज्जो भुजो गयागएणं तीए बंधु त्ति पडिवन्नो / सा तेसिं ओसहाणं मद्दणकारणं पुच्छेइ / सो अ कोडिरसवेहवुत्तंतं जहटिअं कहेइ / अन्नया दुहं निअपुत्ताणं तीए निवेइअं-जहा एअस्स रससिद्धी होहिइ ति / ते रसलुद्धा निअरज मुत्तुं नागजुणपासमागया / कइअवेणं तं रसं पित्तुमणा पच्छन्नवेसा, जत्थ नागजुणो मुंजइ तत्थ रससिद्धिवुत्तं पुच्छंति / सा य तज्जाणणस्थं तदृढ सलूणं रसवई साहेइ / छम्मासे अइक्कंते खार त्ति दूसिआ तेण रसवई / तओ इंगिएहिं रसं सिद्ध नाऊण पुत्ताण निवेइअं 25 तीए / तेहिं च परंपराए नायं जहां-वासुगिणा एअस्स दब्भंकुराओ मचू कहिओ त्ति / तेणेव सत्थेण नागजणो निहओ / जत्थ य रसो थंभिओ तत्थ थंभणयं नाम नयरं संजायं / तओ कालंतरेण तं बिंब वयणमित्तवजं भूमिअंतरि अंगं संवुत्तं / इओ अ चंदकुले सिरिवद्धमाणमूरि-सीसजिणेसरसूरीणं सीसो सिरिअभयदेवसूरी गुजरत्ताए 'संभायणठाणे विहरिओ / तत्थ महावाहिवसेण अईसाराइरोगे जाए पञ्चासन्ननगर-गामेहिंतो पक्खिअपडिक्कमणस्थ30 मागंतुकामो विसेसेण आहूओ मिच्छदुक्कडदाणत्थं सबोवि सावयसंघो / तेरसीअड्डरत्ते अ भणिआ पहुणो सासणदेवयाए-भयवं ! जग्गह सुअह बा ! / तओ मंदसरेणं वुत्तं पहुणा-कओ मे निद्दा / देवीए भणिअं-एआओ नवसुत्तकुक्कडीओ उम्मोहेसु / पहणा भणिअं-न सकेमि। तीए भणिअं-कहं न सकेसि / अज्जवि वीरतित्थं चिरं पभावेसि, नवंगवित्तीओ अ काहिसि / भयवया भणिअं-कहमेवंविहसरीरो काहामि ! / देवयाए वुत्तं-धंभणयपुरे सेढीनई उवकंठे * जिनप्रभसूरिजी में पीछे स्वयं को खरतरगच्छीय बताया जबकि यहाँ पर अभयदेवसूरिजी को ‘चंदकुले' इस उल्लेख से चान्द्रकुलीन ही बताया है। खरतरगच्छीय नहीं। - संपादक इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /078
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