Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran
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________________ आगे बढ़ाने का प्रयास किया है। इन बातों से यह स्पष्ट होता है कि वर्तमान में खरतरगच्छ परंपरा जिनवल्लभगणिजी एवं जिनदत्तसूरिजी द्वारा शुरु की गयी सामाचारीओं को वफादार है। अतः यह अनुमान कर सकते हैं कि जिनवल्लभगणिजी से प्रारंभिक रूप एवं जिनदत्तसूरिजी से मुख्य रूप से खरतरगच्छ की शुरुआत हुई थी। "अभयदेवसूरिजी खरतरगच्छीय नहीं थे" -महो. विनयसागरजी अतः यह स्पष्ट है कि वर्धमान, जिनेश्वर, अभयदेव खरतरगच्छीय नहीं, अपितु खरतरगच्छीय जिनवल्लभ, जिनदत्त, मणिधारी जिनचन्द्रसूरि, जिनपतिसूरि आदि के पूर्वज अवश्य थे और ऐसी स्थिति में उत्तरकालीन मुनिजनों द्वारा अपने पूर्वकालीन आचार्यों को अपने गच्छ का बतलाना स्वाभाविक ही है।* (खरतरगच्छ का बृहद् इतिहास - प्रथम खण्ड, पृ. 13) *. उनका स्वाभाविक रूप से अभयदेवसूरिजी को अपने गच्छ का बतलाना भी विचारणीय है। (विशेष के लिए देखें पृ. 53 से 55, 79) ( इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /065 )