Book Title: Itihas Ke Aaine Me Navangi Tikakar Abhaydevsuriji Ka Gaccha
Author(s): Bhushan Shah
Publisher: Mission Jainatva Jagaran
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________________ प्राचीन ऐतिहासिक ग्रंथों के उल्लेख 1. प्रभाचंद्रसूरिजी द्वारा रचित 'प्रभावक चरित्र' (सं. 1334), एक ऐतिहासिक ग्रंथ है, जिसे सभी गच्छ प्रामाणिक मानते हैं। उसमें दिये गये 'अभयदेवसूरि प्रबन्ध' में जिनेश्वरसूरिजी का भी वर्णन दिया है। उसमें उनका पाटण जाना तथा कुशलतापूर्वक वसतिवास वाले साधुओं के विहार की अनुमति प्राप्त करने का विस्तृत वर्णन भी दिया है, परंतु उसमें न तो 'खरतर' बिरुद प्राप्ति का उल्लेख है और न ही राजसभा में किसी वाद के होने का निर्देश है। उसमें केवल सुविहित साधुओं के विहार की अनुमति प्राप्ति का ही उल्लेख है। सूरि पुरंदर हरिभद्रसूरिजी रचित 'सम्यक्त्व सप्ततिका' ग्रंथ की टीका रूद्रपल्लीय गच्छ के संघतिलकसूरिजी ने रची है। उस ग्रंथ की 26वीं गाथा की टीका में प्रसंगोपात जिनेश्वरसूरिजी की कथा भी दी है। उसमें भी जिनेश्वरसूरिजी का पाटण जाना एवं सुविहित मुनिओं के विहार की अनुमति की बात लिखी है, परंतु राजसभा में चैत्यवासिओं से वाद और 'खरतर' बिरुद की प्राप्ति का कोई निर्देश नहीं किया है। जिनविजयजी की दृष्टि में “प्रभावक चरित्र" इसमें कोई शक नहीं कि प्रभाचंद्र एक बड़े समदर्शी, आग्रहशून्य, परिमितभाषी, इतिहासप्रिय, सत्यनिष्ठ और यथासाधन प्रमाणपुरःसर लिखने वाले प्रौढ प्रबन्धकार हैं। उन्होंने अपने इस सुन्दर ग्रंथ में जो कुछ भी जैन पूर्वाचार्यों का इतिहास संकलित किया है, वह बड़े महत्त्व की वस्तु है। इस ग्रंथ की तुलना करने वाले केवल जैन साहित्य-ही में नहीं अपितु समुच्चय संस्कृत साहित्य में भी एक-दो ही ग्रंथ हैं। -कथाकोष प्रकरण, पृ. 21 / इतिहास के आइने में - नवाङ्गी टीकाकार अभयदेवसूरिजी का गच्छ /018