________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
वहाँ पर सन्दिग्ध पाठ को छोड़ कर भान की प्रतिका या स्वतन्त्र शुद्ध पाठ रखने की ही चेष्टा की गयी है। इसी से मूल पाठ और अनुवाद में सर्वत्र एकीकरण होना असंभव है। __अस्तु मैं अब विज्ञ पाठकों का विशेष समय नहीं लेना चाहता हूँ। आगे इस प्रन्थमाला में श्रीमान् बावू निर्मल कुमार जी की शुभभावनानुकूल हो “वैद्यसार” “अकलङ्क संहिता” (वैद्यक) "आयज्ञान-तिलक' (ज्योतिष) ये अपूर्व मौलिक जैन ग्रन्थ क्रमशः प्रकाशित होंगे। वैद्यसार का अनुवाद जारी है। इसके अनुवादक आयुवेदाचार्य पण्डित सत्यन्धर जी जैन काव्यतीर्थ छपारा हैं। आप का कहना है कि यह ग्रन्थ बड़ा ही महत्त्वपूर्ण है
और इसमें करीब डेढ सौ प्रयोग प्रातःस्मरणीय आचार्यप्रवर पूज्यपाद जी के हैं। इसको कुछ विशेष परिचय मुरादाबाद से प्रकाशित होने वाले सर्वमान्य पत्र "वेद्य" में शीघ्र ही प्रकाशित होगा।
पूर्व निश्चयानुसार “चन्द्रोन्मीलन प्रश्न" ज्योतिष ग्रन्थ को भी प्रकाशित करने का विचार पहले था। परन्तु इसकी शुद्ध प्रति के अभाव से इस विचार को अभी स्थगित करना पड़ा। ____ अन्त में विज्ञ पाठकों से मेरा यही नम्न निवेदन है कि इस साहित्यसेवा कार्य में समुचित सहायता प्रदान कर इस ग्रन्थमाला के सञ्चालक श्रीमान् निर्मल कुमारजी का उत्साह बढ़ायेंगे कि जिससे समय समय पर भवन से उत्तमोत्तम ग्रन्थ रत्न प्रकाशित होता रहे।
शान्तिः! शान्तिः !! शान्तिः !!!
भवन-फाल्गुन कृष्ण पञ्चमी रविवार वि० सं० १६६० वीर सं० २४६०
साहित्य सेवकके. भुजबली शास्त्री
पुस्तकालयाध्यक्ष।
For Private and Personal Use Only