Book Title: Gunanuragkulak
Author(s): Jinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashak Trust

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Page 10
________________ इस अमूल्य ग्रन्थ को जैनाचार्य १00८ श्री श्रीमद् विजयराजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज के एकादशम वर्ष के स्मरणार्थ श्रीयुत श्रावकवर्य पोरवाड़शा मोतीजी दलाजी, बागरा मारवाड़ निवासी ने अमूल्य वितरण करने के लिये रतलामस्थ—जैन प्रभाकरयंत्रालय में छपवाकर प्रकाशित किया है, इसलिए उन्हें हार्दिक धन्यवाद देकर, इस वक्तव्य को विश्राम दिया जाता है। संवत् १६७४ पोष शुक्ल ७ मुनियतीन्द्रविजय आहोर (मारवाड़) विनम्र अनुरोध इस ग्रन्थ का प्रथम प्रकाशन वि. संवत् १६७४ में किया गया था। हिन्दी अनुवाद की भाषा उस समय की प्रचलित बोल-चाल की भाषा ही थी, अतः अनुवाद उसी के अनुरूप किया गया था। अब द्वितीय-संस्करण वि. संवत् 20५३ में प्रकाशित किया जा रहा है, अतः वर्तमान में सामान्य रूप से प्रचलित शब्दों का समावेश करते हुए कुछ शब्दों को यथा स्थान बदला गया है, किन्तु इस बात का पूरा-पूरा ध्यान रखा गया है कि ग्रन्थकार की स्व अनुवाद की भाषा का विलोपन न हो। आशा है विद्वत् पाठक इस मन्तव्य को समझकर इस अद्वितीय गुणानुरागी ग्रन्थ का पठन-पाठन एवम् तदनुसार अनुसरण करते रहेंगे।

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