Book Title: Gunanuragkulak
Author(s): Jinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashak Trust

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Page 9
________________ 'मनुष्य योग्य, गुणान्वित, पूज्य और अखण्डआनन्दी तभी बनता है, जब वह गुणानुराग का शरण (आसरा) लेता है। संसार में प्रत्येक योग्यता की उन्नतदशा गुणानुराग से. ही होती है, और गुणानुराग से ही मनुष्य आदर्श-पुरुष समझा जाता है।' "संसार में सत्संग करना, विद्याभ्यास करना, लेक्चरार् (एक विषय पर विशिष्ट व्याख्यान-दाता) बनना, नाना प्रकार के तपः कर्म (तपस्या) करना, आदि-आदि जो कार्य किये जाते हैं, उनसे भी मनुष्य जीवन की उत्क्रान्ति (दिनों-दिन चढ़ती) होती है, किन्तु उन सबसे गुणानुरागी बनना विशेष लाभकारक है।' ___'मनुष्य ही शक्ति, ज्ञान और प्रेम का स्थूल रूप है, और अपने शुभाशुभ विचारों का स्वामी भी मनुष्य ही है, अतएव वह प्रत्येक उत्क्रान्तदशा की व्यवस्था अपने पास रख सकता है। मनुष्य की निर्बलता व सबलता शुद्धता या अशुद्धता, स्वयं उसी की है, न कि-किसी दूसरे की। उनको वही लाया है, न कि कोई दूसरा। उनको वही बदल सकता है, न कि कोई और। उसके सुख और दुःख उसी में उत्पन्न हुए हैं। जैसा वह विचार करता है वैसा ही वह है, और जैसा विचारता रहेगा वैसी ही उसकी दशा होगी।' ___ 'यह सिद्धान्त निश्चय से समझ लेना चाहिये कि बुराई का प्रतिकार बुराई नहीं है, किन्तु बुराई भलाई से ही जीति जाती है। प्रत्येक मनुष्य के साथ उतनी ही भलाई करो जितनी वे तुम्हारे साथ बुराई करते हों।' प्रायः इन्हीं सिद्धान्तों का समर्थन करने वाला यह ग्रन्थ और इसका विवेचन है। जो मनुष्य विवेचनगत सिद्धान्तों के अनुसार अपने चालचलन को सुधारेगा, वह संसार में आदर्श-पुरुष बनकर अपना और दूसरों का भला करेगा, और अन्त में सद्गुणों के प्रभाव से अखण्डआनन्द का स्वामी बनेगा। हमें पूर्ण विश्वास है कि इसमें लिखी हुई शिक्षाओं को वाँचने से और मनन करने से अवगुण दोषदृष्टि दूर होगी, तथा प्रत्येक मनुष्यों के प्रशस्य सद्गुणों पर अनुराग (हार्दिक-प्रेम) बढ़ेगा। उससे उभयलोक में अपरिमित कीर्ति बढ़ेगी इसमें किसी प्रकार का सन्देह नहीं है।

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