Book Title: Gunanuragkulak
Author(s): Jinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri
Publisher: Raj Rajendra Prakashak Trust

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Page 7
________________ १०५ ११२ ११३ १२१ १२१ १२५ १२६ १२६ • जे अहम अहम-अहमा (चौदहवाँ कुलग) (छः प्रकार के पुरुष) • पंचगुडभऽजुन्बण (पन्द्रहवाँ कुलग) (सर्वोत्तम पुरुषों का वर्णन) • आजम्भवभयारी (सोलहवां कुलग) • एवंविहजुवइगओ (सत्रहवाँ कुलग) (उत्तमोत्तम पुरुषों का स्वरूप) • जम्माम्मि तम्मि न प्रणो (अठारहवाँ कुलग) • पिच्छिय जुवईरूवं (उन्नीसवाँ कुलग) (उत्तम पुरुषों के लक्षण-१२५) • साहू वा सहो वा (बीसवाँ कुलग) • पुरिसत्थेसु पवट्ठा (इक्कीसवाँ कुलग) (मध्यम पुरुषों का स्वरूप-१२६) • एएसिं पुरिसाणं (बाईसवाँ कुलग) (चार भेद वाले मनुष्यों की प्रशंसा का फल-१५६) • पासत्थाऽऽइसु अहुणा (तेईसवाँ कुलग) (सभा के मध्य में निन्दा अथवा प्रशंसा प्रसंग-१६३) • काऊण तेसु करुणं (चौबीसवाँ कुलग) (अधमाधमों को उपदेश देने की तरकीब-१६६) • संपइ दूसमसमए (पच्चीसवाँ कुलग) (बहुमान-प्रसंग-१७०) • तनु परगच्छि सगच्छे (छब्बीसवाँ कुलग) (स्वगच्छ अथवा परगच्छ के गुणी साधुओं पर अनुराग-१७२) गुणरयणमंडियाणं __ (सत्ताईसवां कुलग) (गुणों के बहुमान से गुणों की सुलभता-१७५) एयं गुणाणुरायं ___ (अट्ठाइसवाँ कुलग) (गुणानुराग का फल-१८४) बिन्दु-बिन्दु विचार १५६ १६३ १६६ १७० १७२ १७५ १८४ १८६

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