Book Title: Gunanuragkulak Author(s): Jinharshgani, Yatindrasuri, Jayantsensuri Publisher: Raj Rajendra Prakashak Trust View full book textPage 5
________________ श्री गुणानुरागकुलकम् स्मरणं यस्य सत्त्वानां, तीव्रपापौघशान्तये। उत्कृष्टगुणरूपाय, तस्मै श्रीशान्तये नमः।।१।। अति दुष्प्राप्य मनुष्य जीवन को सफल करने के लिए सब से पहले सद्गुणों पर अनुराग रखने की आवश्यकता है, गुणानुराग हृदय क्षेत्र को शुद्ध करने की महोत्तम वस्तु है। गुणों पर प्रमोद होने के पश्चात् ही सब गुण प्राप्त होते हैं, और सब प्रकार से योग्यता बढ़ती है। इसलिए मद, मात्सर्य, वैर, विरोध, परापवाद, कषाय, आदि को छोड़कर मैत्री, प्रमोद, करुणा, माध्यस्थ्य, और अनित्यादि भावनाओं को धारण कर-परगुण ग्रहण करना तथा गुणानुराग रखना चाहिए; क्योंकि इसके बिना इतर गुणों का परिपूर्ण असर नहीं हो सकता। अतएव इस ग्रन्थ का उद्देश्य यही है कि हर एक मनुष्य गुणानुरागी बनें, और दोषों को छोड़ें, इसी विषय को ग्रन्थकार आदि से अन्त तक पुष्ट करेंगे और गुणानुराग का महत्त्व दिखलावेंगे। —आचार्य जयन्तसेनसूरि, 'मधुकर'Page Navigation
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