Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना अनन्तलब्धिनिधान श्री गौतमस्वामी विषयक संस्कृत, प्राकृतादि भाषा निबद्ध कृतियों का यह पुष्पगुच्छ आपके सामने प्रस्तुत है. बरसों पहले इसे प्रकाशित करने का सुनहरा स्वप्न ज्ञान-ध्यान-स्वाध्याय मग्न पूज्य उपाध्याय प्रवर श्री धरणेन्द्रसागरजी म. ने देखा था. पूर्व प्रकाशित अनेक प्रकाशनों व हस्तलिखित प्रतियों में बिखरे इन पुष्पों को पूज्य उपाध्यायजी ने बड़े परिश्रम से एकत्र कर संकलित करने का सुप्रयास किया था. छपवाने की तैयारी हो ही रही थी कि अचानक पूज्य उपाध्यायजी म. स्वर्ग सिधार गए. इस बीच समय काफ़ी गुज़र गया. परम श्रद्धेय राष्ट्रसंत आचार्य भगवंत श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. के निर्देशानुसार इस महापुरुष के स्वप्न को साकार करना भी हमारे लिए उनके प्रति श्रद्धांजलि का अर्घ्य बन गया. इस आत्मतोष से प्रेरित हो कार्य को पुनः आरंभ किया गया. पूज्यश्री द्वारा संगृहीत सभी कृतियों को एक नज़र देखकर आवश्यक स्थलों को संशोधित करना तय हुआ. तदनुसार आचार्य श्री कैलाससागरसूरि ज्ञानमंदिर, कोबा के विशाल भंडार से विविध हस्तप्रतों एवं प्रकाशनों को एकत्र कर पाठ शुद्धि का कार्य प्रारंभ हुआ. पूर्व के प्रकाशनों में रह गई स्खलनाओं को परिमार्जित कर प्रस्तुत प्रकाशन में शुद्धि का शक्य ध्यान दिया गया है. जैसे कि गौतमस्वामी के प्रसिद्ध रास- वीर जिणेसर चरण कमल कमला कयवासो... में ढाल ६, गाथा ५७ में पुर पुर वसता कांइ करीजे, देश देशान्तर काई भमीजे... इस गाथा में एक ही बात पुनरुक्त हुई है. किसी जगह शब्द ही बदला हुआ मिलता है. जैसे परघर वसता कांई करीजे... इस स्थान पर कर्ता को पर परवशता शब्द ही इष्ट है, ऐसी छोटी-छोटी अशुद्धियाँ ११ For Private And Personal Use Only

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