Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 24
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir वे इतने ही सरल और विनम्र थे कि छोटे से छोटा वालक भी उनके पास बिना संकोच चला जाता था. पंन्यास पदवी के पश्चात् बराबर ७ वर्ष व्यतीत होने के बाद जब वि. सं. २०४९ में श्री महावीर जैन आराधना केन्द्र, कोबा में गुरुमंदिर की प्रतिष्ठा होने वाली थी उसी समय प. पू. गुरूदेव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने अपने पट्टशिष्य को उपाध्याय पद के योग्य जान कर वैशाख सुदि ५, वि. सं. २०४९ को उपाध्याय पदवी से विभूषित किया. साथ ही साथ उनके लघु गुरुभ्राता गणिवर्य श्री वर्धमानसागरजी म. सा. को भी पंन्यासपद से विभूषित किया गया. सदा मुस्कुराते सरल स्वभावी उपाध्यायजी को जब भी देखो वे कुछ न कुछ पढ़ते-लिखते ही नज़र आते थे. उपाध्याय पद प्राप्ति के पश्चात् उपाध्यायप्रवर श्री ने प्राय: करके राजस्थान, पूर्व भारत, नेपाल, दिल्ली आदि विविध जगहों पर पू. गुरु भगवंत के साथ विहार करते हुए अपनी प्रतिभा से जयपुर में दो मंदिरजी की प्रतिष्ठा आदि करवा कर शासन की शोभा में निरंतर उन्नति की. उपाध्यायप्रवर श्री ने अपने जीवन में विशेषरूप से साधर्मिक उत्थान, पुराने जिनमंदिरों के जीर्णोद्धार एवं शिक्षा अभ्यास के लिए विशेषकर ध्यान दिया. उपाध्यायप्रवर श्री ने जयपुर तपागच्छ श्रीसंघ की वि. सं. २०५५ के चातुर्मास के लिए बहुत ही आग्रह भरी विनंती होने के वावजूद अहमदाबाद स्थित श्री वासुपूज्यस्वामी जैन संघ, नारणपुरा चार रस्ता की विनंती को स्वीकार कर दिल्ली से अहमदाबाद विहार करके पधारे. अतिशय सुंदर धर्म-आराधना करवाते पूज्यश्री प्रवचन, २० For Private And Personal Use Only

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