Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 91
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गौतम शिष्य कह सांभलो, अमे पंच महाव्रत धार हो मुणिंद; पडिक्कमणा पंच अम सहि, वली श्वेत वस्त्र मनोहार हो मु. ए दोय. ।।६।। राजपिंड कल्पे नहि, भांखे वीरजिन पर्षदामांही हो मुणिंद; एक मारग साधे बिहुँ जणा, तो एवडो अंतर कांई हो । मु. ए दोय. ।।७।। संशयवंत मुनि बेहु थयां, जई पूछे निज गुरुपास हो मुणिंद; गौतम कोप्ट्रकवन थकी, आवे केसी पास उल्लास हो मु. ए दोय. ।।८।। केशी तव सामा जई, गौतमने दीये बहुमान हो मुणिंद; फासु पराल तिहां पाथरी, बिहु बेठां बुद्धि निधान हो __ मु. ए दोय. ।।९।। चर्चा करे जिनधर्मनी, तिहां मलीया सुरनर वृंद हो मुणिंद; बेहु गणधर सोभे अति भला, जाणे एक सूरज बीजो चंद मु. ए दोय. ।।१०।। एक मुक्ति जावु बिहु तणे, तो आचारे का भेद हो मुणिंद; जीव विशेषे जाणज्यो, गौतम कहे म करो खेद हो। __मु. ए दोय. ।।११।। संशय भांजवा सहु तणा, केशी पुछे गुण खाण हो मुणिंद; गौतम भवि जीव हित भणी, तव बोल्या अमृत वाण हो मु. ए दोय. ।।१२।। वक्र जड जीव चरमना, प्रथमना ऋजु मूरख जाण हो मुणिंद; सरल सुबुद्धि बावीशना,तेणे जुजुओ आचार वखाण हो मु. ए दोय. ।।१३।। For Private And Personal Use Only

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