Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 118
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org जागृत करने जैन सांस्कृतिक धरोहर और कला संपदा का संरक्षणसंशोधन करने तथा इस हेतु लोक जागरण के उद्देश्य से यह संग्रहालय कार्य करता है. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संग्रहालय में प्राचीन एवं कलात्मक रत्न, पाषाण, धातु, काष्ठ, चन्दन एवं हाथी दांत की कलाकृतियाँ विपुल प्रमाण में संग्रहित की गई है. इनके अलावा ताड़पत्र, एवं कागज पर बनी सचित्र हस्तप्रतें, प्राचीन चित्रपट्ट, विज्ञप्ति पत्र, गट्टाजी, प्राचीन लघु चित्र, सिक्के एवं अन्य परम्परागत कलाकृतियों का भी संग्रह है. इस संग्रहालय मे विशेष रूप से जैन संस्कृति, जैन इतिहास और जैन कला का अपूर्व संगम है. समस्त संग्रह की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए एक अद्यतन प्रयोगशाला भी स्थापित की गई है. जिसमें समय - समय पर कलाकृतियों का वैज्ञानिक पद्धति से रासायनिक उपचार किया जाता है. संग्रहालय आठ खण्डों में विभक्त है : १. वस्तुपाल तेजपाल खण्ड, २. ठक्कर फेरु खण्ड, ३. परमार्हत् कुमारपाल खण्ड, ४ जगत शेठ खण्ड, ५. श्रेष्ठी धरणाशाह खण्ड, ६. पेथडशा मन्त्री खण्ड, ७. विमल मन्त्री खण्ड, ८ दशार्णभद्र मध्यस्थ खण्ड. प्रथम एवं द्वितीय खण्डों में पाषाण एवं धातु की प्राचीन एवं दुर्लभ कलाकृतियों को प्रदर्शित किया गया है. जिसमें प्रवेश करते ही प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव की वि. सं. ११७४ में बलुआ पत्थर से बनी प्रतिमा, वसन्तगढ़ शैली की धातु से बनी तीर्थंकरों आदि की (७-९वीं शताब्दी) की प्रतिमाएँ अपनी अलौकिक एवं अभूतपूर्व मुद्राओं के साथ दर्शकों को आकर्षित करती है. यहाँ पर ईसा की सातवीं से उन्नीसवीं शताब्दी तक की विभिन्न स्थानों एवं शैलियों की पाषाण एवं ९० For Private And Personal Use Only

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