Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 106
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मंजर होते हैं। (५९) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य वामन (छोटे कद का) किस पाप के फल से होता है? उत्तर- हे गौतम! जिस मनुष्य ने पूर्व भव में अपने शरीर का अभिमान किया हो वह मनुष्य वामन होता है। (६०) प्रश्न- हे प्रभो! शरीर में भगंदर रोग किस पाप के फल स्वरूप में होता है? उत्तर- हे गौतम! जो पूर्व भव पंचेन्द्रिय जीवों के प्राण हरण करता है उसके शरीर में भगंदर रोग उत्पन्न होता है। (६१) हे प्रभो! कंठमाला का रोग किस पाप के फल से होता है? उत्तर- हे गौतम! जो पूर्व भव में मछलियों का शिकार करता है उसे कंठमाला का रोग होता है। (६२) हे प्रभो! पथरी का रोग किस कारण से होता है? उत्तर- हे गौतम! जो पूर्व भव में पर-स्त्री के साथ मैथुन सेवन करता है वह पथरी रोग का शिकार होता है। (६३) प्रश्न- हे प्रभो! नारु (वाला) किस पाप के फल रूप होता है? उत्तर- हे गौतम! जो जो जीव बिना छना जल पीते हैं उन्हें नारू उत्पन्न होता है। (६४) प्रश्न- हे भगवन्! शरीर में प्रत्यक्ष कोई रोग न दिखाई दे परंतु जीव अनेकों दुःखों से दुःखित रहता है। वह किस पाप के फल रूप में होता है। उत्तर- हे गौतम जो जीव घूस (रिश्वत) खाकर सच्चे को झूठा बनाता है। उसे यह दुःख होता है। (६५) प्रश्न- हे भगवन्! शरीर काला कुरूप किस पाप से होता है। ७८ For Private And Personal Use Only

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