Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 107
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उत्तर- हे गौतम! जिसने पूर्व भव में अनेक फल वीजादि तोङ कर उनसे अपना रूप सुन्दर बनाया हो वह कुरूप होता है । (६६) प्रश्न- हे भगवन्! कोई कोई जीव बहुत ही मीठे बोलते हैं परंतु वह कटु मालूम होता है । वह किस पाप कर्म के उदय से ? उत्तर- हे गौतम! जिसने पूर्व भव में पंचेन्द्रियादि जीवों का भक्षण किया हो उसकी मिष्ट भाषा भी अप्रिय मालूम होती है । (६७) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य के सिर झूठा कलंक किस पाप के फल स्वरूप लगता है ? उत्तर- हे गौतम! जो मनुष्य पूर्व भव में अठारवां पापस्थान मिथ्यात्व दर्शन शल्य का सेवन बारंबार करता हो देव गुरू धर्म को न मान कर उलट चला हो उसके सिर झूठा कलंक लगता है । (६८) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य को अत्यधिक निद्रा किस पाप के फल से होती है ? उत्तर- हे गौतम! जो पूर्व भव में मदिरा पान करता है उसे नींद अधिक लगती है । (६९) प्रश्न- हे भगवन्! जीव को अधिक रोग किस कारण से प्राप्त होते हैं ? उत्तर- हे गौतम! जो जीव पूर्व भव में अनंतकाय कंदों का आहार खुश होकर करता है, वह अधिक रोगग्रस्त होता है । ( ७० ) प्रश्न- हे भगवन्! कोई जीव संसारी जीवों तथा माता पिताओं को प्रिये नहीं लगते हैं, वह किस पाप उदय से ? उत्तर- हे गौतम! जो मनुष्य पूर्व भव में विकलेंद्रिय (कीड़े आदि) जीवों को हनन करते हैं वह अप्रिय मालूम होते हैं । (७१) प्रश्न- हे भगवन् ! तरुण पुरुषों को स्त्री का वियोग किस पाप के ७९ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124