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उत्तर- हे गौतम! जिसने पूर्व भव में अनेक फल वीजादि तोङ कर उनसे अपना रूप सुन्दर बनाया हो वह कुरूप होता है ।
(६६) प्रश्न- हे भगवन्! कोई कोई जीव बहुत ही मीठे बोलते हैं परंतु वह कटु मालूम होता है । वह किस पाप कर्म के उदय से ? उत्तर- हे गौतम! जिसने पूर्व भव में पंचेन्द्रियादि जीवों का भक्षण किया हो उसकी मिष्ट भाषा भी अप्रिय मालूम होती है ।
(६७) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य के सिर झूठा कलंक किस पाप के फल स्वरूप लगता है ?
उत्तर- हे गौतम! जो मनुष्य पूर्व भव में अठारवां पापस्थान मिथ्यात्व दर्शन शल्य का सेवन बारंबार करता हो देव गुरू धर्म को न मान कर उलट चला हो उसके सिर झूठा कलंक लगता है ।
(६८) प्रश्न- हे भगवन्! मनुष्य को अत्यधिक निद्रा किस पाप के फल से होती है ?
उत्तर- हे गौतम! जो पूर्व भव में मदिरा पान करता है उसे नींद अधिक लगती है ।
(६९) प्रश्न- हे भगवन्! जीव को अधिक रोग किस कारण से प्राप्त होते हैं ?
उत्तर- हे गौतम! जो जीव पूर्व भव में अनंतकाय कंदों का आहार खुश होकर करता है, वह अधिक रोगग्रस्त होता है ।
( ७० ) प्रश्न- हे भगवन्! कोई जीव संसारी जीवों तथा माता पिताओं को प्रिये नहीं लगते हैं, वह किस पाप उदय से ?
उत्तर- हे गौतम! जो मनुष्य पूर्व भव में विकलेंद्रिय (कीड़े आदि) जीवों को हनन करते हैं वह अप्रिय मालूम होते हैं ।
(७१) प्रश्न- हे भगवन् ! तरुण पुरुषों को स्त्री का वियोग किस पाप के
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