Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 63
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org नहीं बुध नहीं गुरु कवि न कोइ, जसु आगल रहिओ, पंचसया गुणपात्र छात्र, हींडे परवरीओ; करे निरंतर यज्ञकर्म, मिथ्यामति - मोहिय, इ छलि होशे चरणनाण- दंसण विसोहिअ. वस्तु छंद जंबूदीवह जंबूदीवह भरहवासंमि, भूमितलमंडण मगधदेस, सेणीयनरेसर, वर गुव्वर गाम तिहां, विप्प वसे वसुभूई सुंदर, तसु भज्जा पुहवी सयलगुणगण रूवनिहाण, ताण पुत्तविज्जानिलो, गोयम अतिहि सुजाण.. भाषा ( ढाल बीजी) Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चरमजिणेसर केवलनाणी, चउविहसंघ पट्ठा जाणी; पावापुरी स्वामी संपत्तो, चउविह देवनिकाये जुत्तो.. देवे समवसरण तिहां कीजे, जिण दीठे मिथ्यामति खीजे; त्रिभुवनगुरु सिंहासन बेठा, ततखिण मोह दिगंते पेठा. क्रोध मान माया मद पूरा, जाए नाठा जिम दिन चौरा; देवदुंदुभि आकाशे वाजे, धर्म नरेसर आव्या गाजे ... कुसुमवृष्टि विरचे तिहां देवा, चोसठ इंद्र जसु मागे सेवा; चामर छत्र शिरोवरि सोहे, रूपहिं जिणवर जग सहु मोहे...... उपसम - रसभर भरी वरसंता, योजनवाणी वखाण करता; For Private And Personal Use Only ।।६।। ।।७।। 11211 ।।९।। ।।१०।। ।।११।। जाणि वर्धमान जिणपाया, सुरनर किन्नर आवे राया.... । ।१२ । । कांति समूहे झलझलकंता, गयण विमाणे रणरणकंता; पेखवि इंदभूई मन चिंते, सुर आवे अम्ह यज्ञ होवंते ........ ३५ ।।१३।।

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