Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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समवसरण इन्द्रे रच्यु रे, बेठां श्री वर्धमान; बेठी ते बारे परषदारे, सुणता श्री जिनवाण.
जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।३।। वीर कन्हे संजम लघु रे, पंचसयां परिवार; छठ छठ तपने पारणे रे, करतां उग्र विहार.
जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।४।। अष्टापद लब्धिए चड्या रे, वांद्या जिन चोवीश; जग चिंतामणी तिहां कर्यु रे, स्तविया श्री जगदीश.
जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।५।। पनरसें तापस पारणे रे, खीर खांड घृत भरपुर; अमिय जास अंगूठडो रे, उग्यो ते केवलसूर.
जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।६।। दिवाळी दिने उपन्युं रे, प्रभाते केवल नाण; अक्षीण लब्धि तणा धणी रे, नामे ते सफळ विहाण.
स्वाम ।।७।।
पचास वरस घरवासमां रे, छद्मस्थाए त्रीश; बार वरस लगे केवळी रे, बाणुं रे आयु जगीश.
जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।८।। गौतम गणधर वंदिया रे, श्री विजयसेन सूरीश; ए गुरुचरण पसाउले रे, धीर नामे निशदिश.
जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।९।।
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