Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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भूतना प्रेतना जोर भांजे वळी,
गौतम नाम जपतां उल्लासे. मात० तीर्थ अष्टापदे आप लब्धे जई, पनरसें त्रणने दिक्ख दीधी; अठ्ठमने पारणे तापस कारणे, क्षीर लब्धे करी अखूट कीधी. मात०. वरस पचास लगे गृहवासे वस्या, वरस वळी त्रीश करी वीर सेवा; बार वरसां लगे केवळ भोगव्युं, भक्ति जेहनी करे नित्य देवा. मात०. महियल गौतम गोत्र महिमा निधि, गुणनिधि ऋद्धि सिद्धिदायी;
उदय जस नामथी अधिक लीला लहे, सुजस सौभाग्य दोलत सवाई. मात.
(५) श्री गौतमस्वामीनो छंद
पेलो- गणधर वीरनो रे, शासननो शणगार; गौतम गोत्र तणो धणी रे, गुणगण रयण भंडार.
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ज्येष्ठा नक्षत्रे जनमिया रे, वसुभूतिसुत पृथ्वी तणो रे,
ए तो नवनिधि होय जस नाम, ए तो पुरे वांछित ठाम, ए तो गुणमणि केरो धाम,
।।६।।
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।।७।।
।।८।।
जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।
।।९।।
जयंकर जीवो गौतम स्वाम गोबर गाम मोझार; मानव मोहनगार .
जयंकर जीवो गौतम स्वाम ||२ ||
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