Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ||१।। (२) श्री गौतमस्वामी चतुष्पदिस्तुति गुरु गणपति गाउं, गौतम ध्यान ध्याउं; सवि सुकृत सवाहुं, विश्वमां पूज्य थाउं । जगजीत बजाउं, कर्मने पार जाउं; नव निधि रिन्द्रि पाउं, थई समकित ठाउं. सवि जिनवर केरा, साधुमाहे वडेरा; दुगवन अधिकेरा, चउदसय सु भळेरा। दल्या दुरित अंधेरा, वंदिये ते सवेरा; गणधर गुण घेरा, नाथ छे तेह मेरा.. ..।।२।। सवि संशय कापे, जैन चारित्त थापे; तव त्रिपदि आपे, शिष्य सौभाग्य व्यापे। गणधर पद थापे, द्वादशांगी समापे; भवदुख न संतापे, दासने इष्ट आपे.. . ।।३।। करे जिनवर सेवा, जेह इन्द्रादि देवा; समकित गुण सेवा, आपता नित्यमेवा । भवजल निधि तरेवा, नौ समी तीर्थ सेवा; ज्ञानविमल लहेवा, लीललच्छी वरेवा.. ...... ।।४।। For Private And Personal Use Only

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