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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir समवसरण इन्द्रे रच्यु रे, बेठां श्री वर्धमान; बेठी ते बारे परषदारे, सुणता श्री जिनवाण. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।३।। वीर कन्हे संजम लघु रे, पंचसयां परिवार; छठ छठ तपने पारणे रे, करतां उग्र विहार. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।४।। अष्टापद लब्धिए चड्या रे, वांद्या जिन चोवीश; जग चिंतामणी तिहां कर्यु रे, स्तविया श्री जगदीश. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।५।। पनरसें तापस पारणे रे, खीर खांड घृत भरपुर; अमिय जास अंगूठडो रे, उग्यो ते केवलसूर. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।६।। दिवाळी दिने उपन्युं रे, प्रभाते केवल नाण; अक्षीण लब्धि तणा धणी रे, नामे ते सफळ विहाण. स्वाम ।।७।। पचास वरस घरवासमां रे, छद्मस्थाए त्रीश; बार वरस लगे केवळी रे, बाणुं रे आयु जगीश. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।८।। गौतम गणधर वंदिया रे, श्री विजयसेन सूरीश; ए गुरुचरण पसाउले रे, धीर नामे निशदिश. जयंकर जीवो गौतम स्वाम ।।९।। ४६ For Private And Personal Use Only
SR No.008568
Book TitleGautam Nam Japo Nishdish
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDharnendrasagar
PublisherMahavir Jain Aradhana Kendra Koba
Publication Year2001
Total Pages124
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Worship
File Size5 MB
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