Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 66
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गुरु उपर गुरुभक्ति, सामीय गोयम उपनीय, एणि छळे केवलनाण, रागज राखे रंग भरे. जो अष्टापद शैल, वंदे चढीय चउवीस जिण, आतमलब्धि वसेण, चरमसरीरी सोइ मुनि.. इअ देसण निसुणेइ, गोयम गणहर संचलियो; तापस पन्नरसएण, तो मुनि दीठो आवतो ए... तप सोसियनिय अंग, अम्ह सगति नवि उपजे ए, किम चढशे दृढकाय, गज जिम दीसे गाजतो ए.. गिरुओ एणें अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए, तो मुनि चढीओ वेग, आलंववी दिनकर किरण.. कंचनमणि निष्पन्न, दंड कळश ध्वज वड सहिय, पेखवी परमाणंद, जिणहर भरहेसर महिय.. निय निय काय प्रमाण, चउदिसि संठिय जिणहबिंब, पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय.. वयरसामीनो जीव, तिर्यक्जृंभग देव तिहां, प्रतिबोधे पुंडरीक, कंडरीक अध्ययन भणी.. वळता गोयमसामी, सवि तापस प्रतिबोध करे, लेइ आपणे साथ, चाले जिम जुथाधिपति.. खीरखांड घृत आणी, अमिय वुठ अंगूठ ठवि, गोयम एकण पात्र, करावे पारणुं सवे... पंचसया शुभ भाव, उज्ज्वळ भरियो खीर मीसे, साचा गुरु संजोग, कवळ ते केवळरूप हुआ.......... पंचसया जिणनाह, समवसरण प्राकार त्रय, पेखवि केवळ नाण, उपन्नं उज्जोय करे. ३८ For Private And Personal Use Only ....... ।।३२ ।। ।।३३।। ।।३५।। ।।३५।। ।।३६।। ।।३७।। ।।३८ ।। ।।३९।। ।। ४० ।। ।।४१।। ।।४२ ।। ।।४३।।

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