Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योऽष्टापदं तीर्थवरं स्वशक्त्या, तपस्विनां विस्मयमादधानः । तीर्थङ्करध्याननिमग्नचेतागत्वा महानंदमियाय योगी.. . ।।१४।। अष्टापदं दिव्यगिरीन्द्रमेतुं, तपस्विनः केचन बद्धकक्षाः । तथाऽपि तद्दर्शनमेव तेषां, जातं न पूर्वाऽर्जितकर्मदोषात्..... ।।१५।। योऽष्टापदं याति धराधरेन्द्र, तस्मिन भवे मोक्षगतिं स याति । दिव्योक्तिमित्थं हि निशम्य वीर गिराऽतिहष्टः प्रययौ गिरिं तम्.. ............ . ।।१६।। अष्टापदं निर्जरराजशैलमासाद्य लोकोत्तरसम्पदाढ्यम् । सुराऽसुरेन्द्रप्रथितप्रभावं, स्वतेजसा निर्जितभानुमन्तम्.. ।।१७।। मुमुक्षुमुख्यायतनं विभान्तं, दिगन्तविश्रान्तविभावितानम् । तीर्थङ्कराणां प्रणतिं विधाय, स्तुतिं व्यधत्त प्रगुणां स भक्त्या ...... ।।१८।। (युग्मम्) विधाय प्रीत्योत्कटचैत्यवन्दनं, प्रदक्षिणीकृत्य जिनेन्द्रराजिम मेने निजं जन्म कृतार्थमिन्द्रभूतिः समुन्मूलितकर्मराशिः.. ...... ।।१९।। २८ For Private And Personal Use Only

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