Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 22
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संपर्क में आए. उस समय उनकी आयु भर युवावस्था यानि २२ वर्ष की थी. मुनिराजश्री के परिचय से उन्हें संयम जीवन प्राप्त करने की इच्छा हुई. शंकरराज को पता था की माता पिता संयम के लिए कभी भी अनुमति नहीं देंगे. सो उन्होंने मुनि श्री पद्मसागरजी म. सा. से प्रार्थना की कि मुझे चारित्र लेने की उत्कट भावना है पर परिवार वाले मुझे चारित्र नहीं लेने देंगे परंतु मुझ पर कृपा करके आप मुझे चारित्र देवें. मुनि श्री पद्मसागरजी म. सा. के पास मेडता रोड तीर्थ में श्रीफलवृद्धि पार्श्वनाथ भगवान की तीर्थभूमि पर वि. सं. २०१७ के जेठ कृष्ण ५ को संसार से विरक्त शंकरराज ने चारित्र अंगीकार किया. श्री पार्श्वनाथ भगवान के तीर्थरक्षक देव धरणेन्द्र के नाम से शंकरराज का नाम मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी म. रखा गया. जब परिवारवालों को पता चला कि शंकरराज ने चारित्र ले लिया है तब ऊहापोह तो बहुत ही हुआ पर मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी म. की अडिगता पर सब शांत हुआ. मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी का प्रथम चातुर्मास पाली में हुआ. वहाँ केवल उन्होंने दो कार्य किए (१) गुरु सेवा और (२) ज्ञानोपार्जन. अपना सारा समय अभ्यास के पीछे लगा दिया. उनका ध्येय रहा कि मुझे ज्ञानप्राप्ति करनी ही है. किसी भी तरह वे समय को व्यर्थ गँवाते नहीं थे. उन्होंने अपने ज्ञान-ध्यान में वृद्धि करने के साथ ही तत्त्वज्ञान का गहन चिंतन प्रारंभ किया. निरंतर शांतभाव से सभी प्रवृत्तियों से हट कर उन्होंने स्वाध्याय, अध्ययन-अध्यापन, लेखन, चिंतन-मनन में अपना समय दिया. संस्कृत, प्राकृत, हिंदी, गुजराती, मारवाड़ी एवं अंग्रेजी भाषाओं में उन्होंने प्रवीणता प्राप्त की थी. धीरे-धीरे समय व्यतीत होता रहा. गुरुवर्य मुनि श्री पद्मसागरजी म. सा. ने उनको पूज्य दादा गुरूदेव श्री For Private And Personal Use Only

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