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श्रुत-भक्त पूज्य उपाध्याय प्रवर श्री धरणेन्द्रसागरजी म. सा. के जीवन की एक झलक
राजपूताना की पावन गौरवमयी वीरप्रसूता भूमि पर आज से लगभग ६५ वर्ष पूर्व जोधपुर नगर जो कि महाराजा जोधासिंहजी ने बसाया था, उसी नगर के महाप्रभावशाली, परम तारक देवाधिदेव जिनेश्वर परमात्मा महावीरदेव के परम उपासक, श्रेष्ठिरत्न, दानवीर श्री हुकमचंदजी मोहनोत के यहाँ परम सौभाग्यशालिनी, विदुषी, शीलवती ज्ञानकुँवर देवी की कुक्षि से वि. सं. १९९४ आसो सुदि १४ (दि. १८-१०-१९३७) के प्रातःकाल शुभ वेला में पुत्र का जन्म हुआ. उस बालक का नाम शंकरराज मोहनोत रखा गया.
कहते हैं कि, "पुत्र के लक्षण पालने में" इस हक़ीक़त को सही ठहराते हुए वह बालक बहुत ही दयावान था. किसी का दुःख वह सहन नहीं कर सकता था. वालक शंकरराज केवल १२ वर्ष का ही था कि एक बार किसी साइकिल सवार ने एक वृद्ध अंधे व्यक्ति को टक्कर दे दी, वह वृद्ध नीचे गिर गया. शंकरराज उस समय स्कूल जा रहा था. उससे देखा ना गया, उसने तुरंत ही पास में अपने मामा की दुकान पर स्कूल का बस्ता रख दिया और फ़ौरन उस वृद्ध अंधे पुरुष को उठाकर अस्पताल पहुँचाया. जहाँ तक उस अंधे वृद्ध पुरुष को होश नहीं आया वहाँ तक वह वहीं अस्पताल में बैठा रहा. - शंकरराज ने १०वीं अच्छे नंबरों से पास कर गवर्नमेंट के मलेरिया विभाग में इंस्पेक्टर के रूप में सर्विस स्वीकार कर ली.
एक बार उनकी पोस्टिंग फलोदी में हुई. वहाँ शंकरराज मोहनोत ओलीजी की आराधना के निमित्त मुनि श्री पद्मसागरजी म. सा. के
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