Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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तंपि होइ हेमं निट्ठीवणकाइआविलित्तं ते । तिहुयणअच्छेरकरं जयइ अहो जोगमाहप्पं ..
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नूणं विसिट्ठफलयं थावरतित्थाउ जंगमं तित्थं ।
इअ अट्ठावयमुज्झिय ते रिसिणो तं चिअल्लीणा....... । ।१२ । । कोडिन्नदिन्न - सेवालि-तावसा तिजुअ पनरस सया य । अप्पा य तपिआ पहु! इग पायसपडिगहेण तए..
अक्खीणमहाणसलद्धिणो अ तुह नामगहणमित्तेण । अज्जवि लहंति भविआ मणचुंबिअरिद्धिसिद्धीओ... पहु ! अन्ने दायारा संतं चिअ वत्थु विअरिउं पइणो । तं पुण सदिक्खिआणं विअरसि केवलमसंतंपि ....
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परिसाइ तिसट्ठिअहिअतिसयपासंडिवयणविण्णासा । तु वयणनीरपूरे इक्कंमिवि तणमिव तरंति.. इअरछउमत्थसुअमयपसमत्थं चेव वत्थुवित्तीए । आणंदोहिवइअरे तुह खलिअं सुव्वए नूणं..
अम्हारिसावि विगुणा जं गणहरसद्दमुव्वहंति जए । सो तुम्ह कहि गणहरमंतनिवेसस्स महिमलवो...... ..।।१८।। तीसं वरिसंते पहु ! केवललच्छिं सयंवरमुविति । मुविक्खित्था तं वीरभत्तिभंगप्पसंगभया..
सिद्धे जिमि केवलमिओहरीहिं जिणुव्व तं महिओ । दीवा पवत्तिओ किं न दीवओ तप्पहं भयइ ?. कत्तिअसिअपाडिवए केवलमहिमा सुरेहिं तुह विहिआ । तेणज्जवि तम्मि दिणे दीसइ ऊसवमई पुहई...
तु छत्ततलं अप्पं सित्तं जो झाइ अमयबिंदूहिं । सो संतिपुट्ठिकित्तीण भायणं होइ अणुदिअहं..
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