Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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किं कल्पद्रुमयी मरुन्मणिमयी? किं कामदोग्धीमयी
या धत्ते तवनाथ! मे हृदि तनुः कां कां न रूपश्रियम्?...... ।।६।। किं कर्पूरमयी सुचन्दनमयी पीयूषतेजोमयी? किं चूर्णीकृत चन्द्रमण्डलमयी? किं भद्र लक्ष्मीमयी? किं वाऽऽनन्दमयीकृपारसमयी? किं साधुमुद्रामयी-? त्यन्तमें हृदिनाथ! मूर्तिरमला नाऽभावि किं किं मयी?. .......... ।।७।।
अन्तः सारमपामपास्य किमुकिं पार्थ्यव्रजानां रसं सौभाग्यं किमु कामनीय सुगुण श्रेणी मुषित्वा च किम्? सर्वस्वं शमशीतगोः शुभरुचे-रोज्ज्वल्यमाछिद्य किं?
जाता में हृदि योगमार्ग पथिकी मूर्तिः प्रभो! तेऽमला........ ।।८।। ब्रहमाण्डोदरपूरणाधिकयशः कर्पूरपारीरजःपुजैः किं धवलीकृता तव तनुर्मद्दध्यानसद्मस्थिता। किं शुक्लस्मितमुद्गरैर्हतदलाद् दुष्कर्मकुम्भक्षरद्ध्यानाच्छामृतवेणिभिः प्लुतधरा श्रीगौतम! भ्राजते.. ............ ।।९।।
किं त्रैलोक्यरमाकटाक्षलहरी-लीलाभिरालिंगिता। किं चोत्फेनकृपासमुद्रमथनोद्गारैः करम्बी कृता (गारैः) किं ध्यानानलदह्यमान निखिलान्तः कर्मकाष्टावली
रक्षाभिर्धवला विभाति हृदि मे श्री गौतमत्वततनुः.......... ।।१०।। इत्थं ध्यानसुधासमुद्रलहरी चूलाञ्चलान्दोलन क्रीडानिश्चल रोचिरुज्वलवपुः श्रीगौतमो मे हृदि? भित्वा मोहकपाटसम्पुटमिति प्रोल्लासितान्तःस्फुरज् ज्योतिर्मुक्तिनितम्बिनी नयतु मां सब्रह्मतामात्मनः................. ।।११।।
श्रीमद् गौतमपादवन्दनरुचिः श्रीवाङ्मय स्वामिनी मर्त्यक्षेत्रनगेश्वरी त्रिभुवनस्वामिन्यपि श्रीमती
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