Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

View full book text
Previous | Next

Page 40
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।।१०।। ||११।। .।।१२।। न रागवान्नो भजसेऽतिचारं नालम्बसे वक्रगतिं कदाचित् । पुरस्कृतेनोऽपि घनाय नासि तथापि पृथ्वीतनयोऽसि रूढः.. प्रभो महावीरमुपास्य सम्यक्त्वयार्जितं यज्ञकलारहस्यम् । गृहे यतित्वेऽप्यभिरूपरत्नत्रयीजुषा कीर्तिरतानि तेन. त्वद्वाणिमाधुर्यजिता पलाय्य सितोपला काचघटी विवेश । तत्रापि भीतिं दधती शलाका व्याजेन जग्राह तृणं तु वक्त्रे... श्रीवीरसेवारसलालसत्वात् त्तद्बाधिनी केवल बोधलक्ष्मीम् । अप्याय(ग)तामादरिणीं वरीतुं तृणाय मत्वा त्वमिमन्वमंस्थाः... अपोढ पङ्के कविभिर्निषेव्ये निरस्ततापे बहुभङ्गजाले | विभो भवद्वाङ्मुखगाङ्गपूरे दुर्वादिपूगास्तृणवत्तरन्ति. राकामये दिग्वलये समन्ताद्यशःशशाङ्केन ध्रुवं कृते ते । कुहूध्वनिः केवलमेव कण्ठदेशं पिकानां शरणीचकार. ।।१३।। ||१४|| र........ .. ।।१५।। १२ For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124