Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba
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पीत्वा गिरं ते गलितामृतेच्छाः सुराश्चिरं चक्रुरभोज्यमिन्दुम् । सुधाहृदे तत्र मुनीश मन्ये
लक्ष्मच्छलाच्छैवलमीक्ष्यतेन्तः सौभाग्यभङ्ग्यापिसमाधिदाने प्रत्येति लोकः कथमेतदज्ञः । यत्त्वां समग्रा अपि लब्धिकान्ताः समालिलिगुः समकालमेव.
त्वत्पादपीठे विलुठन्त्यमास्त्वद्गेहभृत्याः किल कल्पवृक्षाः । तैरप्यमा हन्त तवोपमानोपमेय भावः कथमस्तु वस्तु.. पदोर्नखाली तव रोहिणीयं मुदे न कस्याद्भुत कृच्चरित्रा। वन्दारुपुंसां वदनेन्दुरन्तः प्रविष्टबिम्बोऽपि शिवाय यस्याः.
यत्केवलज्ञानमविद्यमानमथात्मनि स्वान्तिषदामदात्तम् । लोकोत्तरत्वे ननु तावकानां दिङ्मात्रमेतच्चरिताद्भुतानाम् ... भवद्गुणानां स्तुतयो गुण - विधीयमाना विबुधाधिपाद्यैः | स्तुत्यन्तरस्तोत्रकथागणस्य समाप्तये वृत्करणी भवन्ति.
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