Book Title: Gautam Nam Japo Nishdish
Author(s): Dharnendrasagar
Publisher: Mahavir Jain Aradhana Kendra Koba

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Page 23
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir कल्याणसागरसूरीश्वरजी म. सा. की सेवा में रखा तो गुरु आज्ञा को शिराधार्य करक उन्होंने अपने दादा गुरूदेव श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म. सा. की वहुत ही सेवा करके उनके दिल में स्वयं के लिए एक जगह बना ली. हर तरह से योग्य और अपने होनहार शिष्य की प्रगति देखकर आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. काफ़ी प्रसन्न थे. मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी म. को इसी अरसे में एक शिष्यरत्न की प्राप्ति हुई, जिनका नाम है मुनि श्री निर्वाणसागरजी म.. अपने गुरु की ही तरह मुनि श्री निर्वाणसागरजी म. भी आराधना में हमेशा तत्पर रहते हैं. _ वि. सं. २०४१ में जव मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी वासुपूज्यस्वामी जैन संघ, आंबावाडी, अहमदाबाद में चातुर्मास कर रहे थे तब सभी तरह से योग्य जान कर प. पू. आचार्य श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. ने उन्हें पंन्यास पदवी देने की घोषणा की. इस निर्णय से सारे श्रीसंघ में खुशियाँ छा गई और पंन्यास पदवी आंबावाडी जैन संघ में ही देना तय किया गया. वि. सं. २०४२ के फाल्गुन सुदि ३ के शुभ दिन आंबावाडी जैन संघ के प्रांगण में प. पू. प्रशांतमूर्ति गच्छाधिपति आचार्यदेव श्री कैलाससागरसूरीश्वरजी म. सा. के दिव्य आशीर्वाद से पू. वर्तमान गच्छाधिपति आचार्यप्रवर श्री सुबोधसागरसूरीश्वरजी म. सा., पू. आचार्यदेव श्री मनोहरकीर्तिसागरसूरीश्वरजी म. सा., पू. आचार्यप्रवर श्री कल्याणसागरसूरीश्वरजी म. सा., पू. आचार्य देव श्री पद्मसागरसूरीश्वरजी म. सा. आदि विशाल साधु-साध्वीजी म. सा. की उपस्थिति में पाँच दिन के महामहोत्सवपूर्वक मुनि श्री धरणेन्द्रसागरजी म. सा. को पंयास पद से विभूषित किया गया. वे अब पंन्यास श्री धरणेन्द्रसागरजी म. सा. वने, पंन्यास पदवी प्राप्त करने के पश्चात भी १९ For Private And Personal Use Only

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