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संशोधन
"श्रीजिनदत्तसूरि प्राचीन पुस्तकोद्धार फण्ड'-(सूरत) से ४१ वाँ "सामाचारी शतक नामक ग्रन्थ प्रकाशित किया गया है उसके निवेदनमें “४ प्रति पटना संडारमाथी साहित्यप्रेमी भुमि श्री पुश्यवियना अनुग्रहथी" इस प्रकार लिखा है लेकिन वह प्रति पाटनके भण्डारकी न समझकर प्रवर्तक मुनि श्रीकान्तिविजयजीके भंडारकी समझना.
पूज्य गुरुवर्य श्रीउपाध्याय सुखसागरजीमहाराज ने यह ग्रन्थका संशोधन करनेमें अति परिश्रम उठाया है, और श्रीयुत मोहनलाल भगवानदास झवेरी सोलिसिटर महाशयने भी ग्रुफ देखने में स्वसमयका भोग दिया है और इस ग्रंथकी प्रस्तावना तथा ग्रंथसार लिखनेका भी परि श्रम लिया है प्रस्तुत ग्रन्थमें किसी भी तरहकी अशुद्धि रहगई हो तो सज्जन महाशय सुधारेंगे और पठन-पाठन कर संशोधक महाशयका परिश्रम सफल करेंगे यही शुभेच्छा.
संवत् १९९६ मार्गशीर्ष शु.३ ता० १३-१२-३९, बम्बई.
निवेदकमुनिमंगलसागर.
"Aho Shrut Gyanam"