Book Title: Doha Giti Kosa
Author(s): Sarahpad, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 76
________________ 59 जइ गुरु कहइ सअलु ६६.१ जइ गुरु-वुत्तउँ १३.२ जइ जगु पूरिउ १३४.१ जइ ठाणे ण १२२.१ जइ णउ विसऍहिँ ९५.१ जइ णग्गाविअ ७.१ जइ पच्चक्खु किँ , १६.१ जइ पुणु अह-णिसि ३४.२ जइ पुणु घेप्पों १३४.२ जइ पुणु बेण्णि-वि१४ क.२,१४ ख.२ जइ मणु सहजु १०५.१ जइ-वि पमाएं १०९.१ जइ-वि रसाअलु पइसरहु ५६.१ जह संकहें णहु १५४.२ जक्ख-रूउ जिवँ ७७.२ जा-उप्पाअणे ९८.१ जसु णउ आइ १४६.१ जहिँ इच्छइ तहिँ २८.१ जहिँ मणु पवणु ४५.१ जाणहाँ परमत्थेण ८३.२ जाणिउ तें णवि ३७.२ जा-लइ मरइ १७.१ जावँ ण अप्पर ६३.१ जाहिँ तहिँ मणु . ६२.२ जाहिँ मणु . ९२.१ जिणवर-वअणें पतिज्जहाँ ११४.१ जिवँ केली-तरु १४९.१ जिवँ जल-मज्झें ११५.१ जिवँ जलहिँ ससि १२७.१ जिवँ पडिबिंबु १४०.१ जेत्तु विचिंतहो ७२.१ जेत्तु-वि पइसइ ७४.१ जेथु-वि तेत्थु-वि ९६.१ जो एआवत्थ १२९.२ जो जसु जेण १०.१ जोण पइसइ १५१.१ जो दुज्जअ पडिअ १४२.२. जो भावइ मणु १३८.२ जो मण-गोअरे १११.२ जोवइ चित्तु ण-याणइ ४३.१ जो वढ मूलह १६२.१ जो सो जाणइ १२३,२ झाणे मोक्खु किं ८६.१ झाण-रहिअ किं ३८.१ झाण-हीणु पव्वज्जें १५.१ झाणहिँ जे किउ ६९.२ झाणे मोहिउ ३०.२ ठाणेहिँ ठाणेहिँ १२३.१ णअण बेण्णि १५४.१ णउ कारावइ णउ करइ १४५.२ णउ जाइअइ णउ १४५.१ णउ तसु दोसु ८७.२ णउ तहिँ णिंद १४४.१ णउ तं वाएं णउ भवें णउ णिव्वाणहिँ १३८.१ णउ सो झाणे णउ . १२४.२ णादहों बिंदुहु १६३.१ णावहिँ सण्ण ४३.२ ७३.१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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