Book Title: Doha Giti Kosa
Author(s): Sarahpad, Dalsukh Malvania, H C Bhayani
Publisher: Prakrit Text Society Ahmedabad

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Page 127
________________ 110 चर्यागीति २८ (शबरपाद) (राग : वलाड्डि) उच्चउ उच्चउ पव्वउ वसइ तहिँ सबरी बाली । मोरंग-पिच्छ परिहणें सबरिहें गीवहिँ गुंजहिँ माली ॥ १ उम्मत्त सबरा पग्गल सबरा मा कर रोल-रुहाडी । तुहारिअ णिअ-घरिणिय णामें सहज-सुदारी ।। २ णाणा तरुवर मुउलिअ रे गअणहिँ लग्गिअ डाली । एक्केल्ली सबरी एउ वणु हिंडइ कण्णहिँ कुंडल-वज्ज-धारी ॥ ३ तिधाउ-खट्टहिँ पडिअउ सबरु महसुह-सेज्जा छाइअ । सबरु भुजंगु णिरामणि दारिअ पेम्में रत्ति विहाइअ ॥ ४ हिअअ-तंबोलउ xxxx कप्पूरु मह-सुहें स्वाइअ । सुण्ण-णिरामणि कंठहिँ लाइअ मह-सुहे रत्ति पहाइअ । ५ सदगुरु-वक्क-पिच्छे [धणुहें] विंधहि णिअ-मण-बाणें । एकें सर-संधाणे विधहि विंधहि पर-णिव्वाणे ॥ ६ उम्मत्तु सबरउ [पग्गलु सबरउ] पेल्लिउ गुरुएं रोसें । गिरिवर-सिहर-संधिहिँ पइसंतें लोट्टिहि कइसें ॥ ७ [संस्कृत छाया] उच्च: उच्चः पर्वतः वसति तत्र शबरी बाला । मयुरांग-पिच्छं परिधाने शबर्याः ग्रीवायां गुञ्जानां माला ।। १ उन्मत्त शबर पागल शबर मा कुरु कोलाहल-कलहम् । त्वदीया निज-गृहिणी नाम्ना सहज-सुदारा ॥ २ नाना तरुवराः मुकुलिताः रे गगने लग्नाः शाखाः । एकाकी शबरी एतद् वने भ्रमति कर्णयोः कुण्डल-वज्र-धारिणी ॥ ३ त्रिधातु-खट्वायां पतित: शबर: महासुख-शय्या आच्छादिता । शबर: भुजङ्गः नैरात्मा-दारिका प्रेम्णा रात्रिः विभाता ॥ ४ हृदय-ताम्बूलं xx xx कर्पूरं महासुखे भुक्तं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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