Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
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को सि तुमं कत्थ य पत्थिओ सि ? सो भणइ सावओ अहय । संपत्थिओ म्हि वीरं, नमिउं सोउंच धम्मकहं ॥४१॥ अह भणइ अज्जुणो वि हु, सिहि ! तए सह अहं जिणं नमिउं । सोउं च धम्ममिच्छामि, आह सिट्ठी तओ एवं ॥४२॥ भद्द ! इह मणुयजम्मस्स, सारफलमित्तियं चिय जयम्मि । जं कीरइ जिणवंदणधम्मकहासवणमाईयं ॥४३॥ इय भणिय तेण सहिओ, सुदंसणो पत्तओ समोसरणे । पणविहअभिगमपुव्वं, पयओ पणमेइ जिणनाहं ॥४४॥ हरिसंसुपुण्णनयणो, वियसियवयणो कयंजली सुमणो । भत्तिबहुमाणपवणो, इय निसुणइ देसणं पहुणो॥४५॥
तथाहिभो भविया ! कहमवि लहिय, मणुयजम्म हवेह पवणमणा । जिणवरपवयणसवणे, दुहहरणे सयलगुणकरणे ॥४६॥
जओसोचा जाणइ कल्लाणं, सोचा जाणइ पावगं । उभयं पि जाणई सोचा, जं सेयं तं समायरे ॥४७॥ अंहःसंहतिभूधरे कुलिशति क्रोधानले नीरति, स्फूर्जजाड्यतमोभरे मिहिरति श्रेयोद्रुमे मेघति । माद्यन्मोहसमुद्रशोषणविधौ कुम्भोद्भवत्यन्वहं, सम्यग्धर्मविचारसारवचनस्याकर्णनं देहिनाम् ॥४८॥ धम्मो य तत्थ दुविहो, सब्वे देसे य तत्थ सव्वम्मि । पञ्च य महव्वयाई, देसे पुण बारस वयाई ॥४९॥ इय सुणिय हद्वतुट्टो, सिट्ठी नमिउ जिणिंदपयकमलं । कयकिच्चं मन्नतो, अप्पाणं नियगिहं पत्तो॥५०॥ अज्जुणओ पुण वेरग्गपरिगओ जिणवरिंदपयमूले । छट्टक्खमणअभिग्गहजुत्तं दिक्ख पवज्जेइ ॥५१॥
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