Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 312
________________ राजामह बाहुच्छायाए, वच्छ ! वसंतस्स ते भयं नत्थि । अह अस्थि ता निवेयसु, जेण निवारेमि तं तुरियं ॥२६॥ थावच्चासुतःजइ एवं ता इंत, जरं च मच्चु च मे निवारेहि । जेण सुनिव्वुयहियओ, भोगसुहं सामि ! माणेमि ॥ २७॥ भणइ नरिंदो सुंदर 1, दुव्वारमिमं दुर्गपि जियलोए । वारिउमिमे न सक्को, सक्को वि कहं पुणो अम्हे ? ॥२८॥ जओकम्मवसेण जियाणं, जरमरणाई हवंति संसारे । इयरो भणइ अउ चिय, कम्माई निहंतुमिच्छामि ॥२९॥ इय नाउ निच्छयं से, नरनाहो भणइ साहु साहु तुमं । पव्वयसु धीर ! एवं, पुज्जंतु मणोरहा तुज्झ ॥ ३०॥ अह आगम्म सभवणे, कारेइ हरी पुरीइ सयलाए । उग्घोसणयं एवं, थावच्चानंदणो एसो ॥३१॥ पव्वयइ मुक्खकामी, जइ ता अन्नोवि कोवि पव्वयइ । तं अणुमन्नइ कण्हो, तस्स कुटुंब च पालेइ ॥३२॥ सोऊण घोसणमिणं, सहस्समेगं उवट्टियं तत्थ | रायप्पमुहसुयाणं, संसारविरत्तचित्ताणं ॥३३॥ निक्खमणमहामहिम, राया तेसिं करेइ सव्वेसिं । इय थावच्चापुत्तो, सहस्ससहिओ विणिक्खंतो ॥ ३४॥ जाओ चउदसपुयी, जिणेण सो चेव तस्स परिवारो। दिन्नो तो उग्गतवो, विहरइ महिमंडलं एसो ॥३५॥ पडिबोहइ जिणधम्मे, जणं बहुं तह य सेलगपुरम्मि। पंचसयमंतिसहियं, सेलगरायं कुणइ सहूं ॥३६॥ Jain Education XXI aton For Private Personel Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340