Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
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परिवडिओ दुहेणं, सो कमसो परियणेणवि विमुक्को । परिणयणत्थं अधणु, त्ति कोवि न य देह से कणं ॥३॥ तो लजिंतो नयराज, णिग्गओ दविणअज्जणसयण्हे । पिच्छइ कत्थवि मग्गे, पारोहं किंसुयतरुम्मि॥४॥ तो सरह खन्नवार्य, सो सुयपुव्वं जहा अखीरदुमे । जइ दीसइ पारोहो, ता तस्स अहे धणं मुणसु ॥५॥ बिल्लपलासेसु धुवं पारोहे, थूलए बहुं दव्वं । तणुए थोवं तह निसि, जलिरे बहु थोवमियरम्मि ॥६॥ विद्धे पुण पारोहे, रत्तरसे निग्गयम्मि रयणाई । सेए रययं पीए, कणगं न हु नीरसे किंपि ॥७॥ जत्तियमित्ते देसे, पारोहो उच्चओ भवे उवरिं । तत्तियमित्ते देसे, अहे वि निहियं धणं मुणसु ॥८॥ तणुए उवरि परोहे, हिट्ठा पिहुले धुवं धणं मुणसु । विवरीए तयभावो, इय निच्छेऊण धणमित्तो ॥९॥ "नमो धनदाय, नमो धरणेद्राय, नमो धनपालाय" इति मन्त्रं पठन् खनति स तं प्रदेशम् । किंतु अपुन्नवसेणं, केवलमंगारपूरियं नियइ । तंबमयकलसजुयलं, तओ इमो चिंतइ विसण्णो ॥१०॥ पारोहे पीयरसदसणेण कणयम्मि निच्छिए वि धुवं । इंगाल चिय पिच्छेमि, केवले ही! विगयपुण्णो ॥११॥ दविणत्थिणा नरेणं, न हु कायव्यो तहावि निव्वेओ । जं सव्वत्थवि गिज्जइ, सिरीइ मूलं अनिव्वेओ ॥१२॥ इय चिंतिय पुरओ वि हु, बहुभूभागे खणेइ दविणकए । न य पावइ काणवराडियं पि कत्थइ अपुण्णवसा ॥ १३ ॥ सिक्खेइ धाउवाय, मुत्तु किलेसं लहेइ न हु अन्नं । होउं वणिओ तो चडइ, पवहणे भज्जइ तयं तो॥ १४ ॥ अह थलमग्गवणिज्जं, करेइ अज्जेइ कहवि किंपि धणं । तंपि नरेसरतक्करपमुहेहिं पिप्पए तस्स ॥१५॥
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