Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad

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Page 320
________________ अन्नदिणे करुणाए, सुंदरनामेण सावएण इमो । नीओ मुणीण पासे, कहिओ तेहिंपि इय धम्मो ॥३०॥ उवसमविवेगसंवरसारो जहसत्ति नियमतवपवरो। जिणधम्मो कायचो, अतुच्छलच्छीइ कुलभवणं ॥ ३१॥ इय सुणिय किंचि भावेण, किंपि दक्खिण्णओ वि गिण्हेइ । सो पइदिणचिइवंदणकरणजुएऽभिग्गहे केवि ॥ ३२॥ मुणिणो नमित्तु पत्तो, सगिहम्मि पमायपरवसो धणियं। भंजइ अभिग्गहे केवि, केवि अइयरइ मूढमणो ॥ ३३ ॥ इक्कं पुण चिइवंदणअभिग्गहं पालए निरइयारं । कालक्कमेण मरिउं, संपइ सो एस तं जाओ ॥ ३४ ॥ पुवकयदुक्कयवसा, तए इमं एरिसं फलं पत्तं । जिणवंदणप्पभावा, जायं मह दंसणाईयं ॥३५॥ इय सोउं धणमित्तो संवेगगओ नमित्तु मुणिनाहं । बहुदुक्खलक्खदलणं, गिहिधम्मं गिण्हए सम्मं ॥३६ ॥ दिवसनिसिपढमपहरे, मुत्तुं धम्मक्खणं अहं सेसं । सहसाणाभोगेणं, विणा पओसं च वज्जिस्सं ॥ ३७॥ एवं गिहिय घोरं, अभिग्गहं वंदिउं च गुरुचरणे । पुरमज्झे कस्सइ सावगस्स गेहम्णि ? उत्तरइ ॥३८॥ सूरुदए भागेणं, उच्चिणिउं मालिणा समं कुसुमे । घरजिणहरजिणपडिमाउ, निच्चमच्चेइ भत्तीए ॥ ३९ ॥ बीए पहरे लोयागमाविरोहेण कुणइ ववसायं । संपज्जइ अकिलेसेण, तेण खलु भोयणं तस्स ॥४०॥ जह जह धम्मम्मि थिरो, हवेइ तह तह पवड्डए विहवो । विच्चेइ बहुं धम्मे, वीसुं गिण्हेइ तो गेहं ॥४१॥ एगेण महिड्डियसावएण दिना य तस्स नियधूया । अइधम्मिउ त्ति काउं, दुन्नि वि चिट्ठति धम्मपरा ।। ४२॥ पत्तो कयावि सो गोउलम्मि गुलतिल्लमाइ विविकणिउं । तव्वेलं पुण तं गुट्ठमन्नगिह गंतुमुच्चलियं ॥४३॥ JainEducation ForPrivate sPersonal use Only linelibrary.org

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