Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
View full book text
________________
श्रीधर्मरत्नप्रकरणम् ॥१४॥
अनुटवेवरूप शीलं
ता तं मूलामिन, सहसा पिच्छिवि बहुं च पलविता । असुभरपुण्णनयणो, दुहिओ से कुगइ मयकिच्चं ॥२०॥ इत्तो य सुजसनामा, चउनाणी तत्थ आगओ तं च । नमिउं पत्तो सिट्टी, गुरुवि इय कहइ से धम्म ॥२१॥ भो भक्यिा! उब्भडवेसवज्जणं कुणह चयह परुसगिरं । चिंतह भवस्सरूवं, जेण न पावेह दुक्खाई ॥२२॥ तं सोउं संविग्मो, सिट्टी पणमित्तु पुच्छए भय । मह जामाउयदुहियाहि, किं कयं दुक्कयं पुदिव ॥२३॥ भणइ गुरू अभिरामे, सालिग्गामम्मि इत्थिया एगा। आसि अडवि ब्व बहुमयबालसुया दुग्गया विहवा ॥२४॥ सा उयरकंदरापूरणथमीसरगिहेसु निश्चपि । कम्मं करेइ पुत्तो, उ चारए बच्छरूवाई ॥२५॥ सा ठविय भोयणं सिक्कगम्मि पुत्तट्ठमन्नया पत्ता । कस्सइ गेहे कम्मत्थमागओ तम्मि जामाऊ ॥२६॥ सा तस्स तुप्पणन्हाणमाइकम्मेसु निउत्तया पढमं । पच्छा खंडणपीसणरंधणदलणाइ कारविया ॥२७॥ जाया महई वेला, तेण गिहत्थेण वाउलत्तणओ । न हु सा जिमाविया तो, भुक्खियतिसिया गया सगिहं ॥२८॥ तं दद्लु सुएण छुहाइएण भणिया सनिद् ठुरं एसा। किं तत्थ तुमं खित्ता, सूलाए जं न लड्डु पत्ता ॥२९॥ तीइवि अणत्थभरियाइ जंपियं किं करा तुहं छिया। सिकगाउ गहिऊण, भोयणं नेव भुचोऽसि ॥३०॥ इय फल्सवयणजणियं, कम्मं दोहिवि निकाइयं तेहिं । अइनिबिडजडिमभावेण नेव आलोइयं तं च ॥३१॥ तेसिं दाणरयाणं, संजमरहियाण मज्झिमगुणाण । किंचि सुहभावणाए, वर्ल्डताणं गलियमाउं ॥३२॥ तो सो बालो जाओ, जामाऊ तुझ बंधुदत्तु त्ति । सा पुण दुग्गयनारी, बंधुमई तुह सुया जाया ॥३३॥
तत्र बन्धुम| तीज्ञातम् । ॥१४॥
Jain Education International
For Private Personel Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340