Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad

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Page 338
________________ ईसिकुविएण भणिया, हा पाविटे ! निकिट्ठ ! दुच्चिद्वे ! । निल्लज्जे ! अज्जवि पावपुंजमज्जेसि केवइयं ॥३९॥ जं सत्तरत्तअंतो, आलस्सयवाहिणा समभिभूया। मरिऊण तं गमिस्ससि, निरयावासम्मि लोलुयए ॥४०॥ इय सुणिय अवगयमया, अइकुविओ अज्ज मे महासयगो । मरणभयवेविरंगी, दुहियमणा सा गया गेहे ॥४॥ इत्तो य तत्थ पत्तेण, वीरनाहेण गोयमो भणिओ । तं वच्छ ! गच्छ पभणसु, मह क्यणेणं महासयगं ॥४२॥ भद्द ! न कप्पइ उत्तमगुणाण सड्डाण भासिउँ फरुसं । परपीडाए जणगं विसेसओ उत्तमट्ठम्मि ॥४३॥ ता तस्स तुमं दुब्भासियस्स गिहाहि भद्द ! पच्छित्तं । तत्तो तह त्ति भणिउं, गोयमसामी तहिं पत्तो ॥४४॥ कहिओ पहुआएसो, संवेगगओ तओ महासयगो । वंदित्तु गोयमपहुं, आलोयइ तं अईयारं ॥४५॥ पडिवज्जइ पच्छित्तं, तो पत्तो गोयमो पहुसमीवे । इयरोवि समाहिजुओ, सुमरंतो वीरपयकमलं ॥४६॥ कयसट्ठिभत्तछेओ, विहिणा मरिउं सुहम्मकप्पम्मि । अरुणामम्मि विमाणे, चउपलियठिई सुरो जाओ॥४७॥ तत्तो चविय विदेहे, विसिट्ठदेहो लहित्तु चारित्तं । स महासयगस्स जिओ, अफरुसभासी सिवं गमिही ॥४८॥ महाशतक आलपन् परुषवाक्यमालोचना, गणाधिपतिगौतमाद् भुवनभानुना ग्राहितः। इति स्फुटमवेत्य भो विमलशीलभाजो जनाः, सुधामधुरमुत्तमं वदत सङ्गतं तद् वचः ॥४९॥ ॥ इति महाशतकसंविधानकं समाप्तम् ॥ +- - Jain Education For Private & Personel Use Only HOOTainelibrary.org

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