Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
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श्रीधर्मरत्नप्रकरणम् ॥१४९॥
परुषवचनाभियोगपरित्याग:
मित्ते सत्तुम्मि मणिम्मि लेट् ठुए कश्चणम्मि पाहाणे । मुक्खे भवे भविस्सं, कया अहं निव्विसेसमई १ ॥ २५॥ एवं पइदिणकिरियं, कुणमाणो माणवो निहियमाणो । गिहिवासेवि वसंतो, आसन्नं कुणइ सिद्धिसुहं ॥ २६ ॥ इय सुणिय महासयगो, आणंदो विव गहित्तु गिहिधम्मं । तुट्ठो सगिहम्मि गओ, विहरइ अन्नत्य सामी वि ॥ २७॥ तस्संसग्गवसेणवि, पाविद्या रेवई न पडिबुद्धा । मज्जरसपिसियगिद्धा, खुद्दा धणियं धणे लुद्धा ॥ २८ ॥ अइविसयगिद्धिगहिला, सा अन्नदिणम्मि नियसवत्तीओ। छ स्सत्थपओगेणं, छ ञ्च हणइ विसपओगेणं ॥ २९ ॥ दुपयचउप्पयधणकणगमाइ तासिं च संतियं लेइ । बहुपाणधायणी कूरमाणसा चिट्ठइ सयावि ॥ ३०॥ घुढे य अमाघाए, पलमलहंती कयावि तो एसा । माराविय सवयाओ, आणावइ गोणपोयदुर्ग ॥ ३१॥ चउदसवरिसवसाणे, कुटुंबभारे ठवित्तु जिद्वसुयं । पोसहसालं पविसइ, विरत्तचित्तो महासयगो ॥ ३२॥ सा मज्जपाणमचा, हावविलासाइविविहभावेहिं । तं उवसग्गइ बहुसो, अहियासइ सुट् ठु स महप्पा ॥ ३३ ॥ सम्मं समणोवासगपडिमा इक्कारसावि फासेइ । नाऊण चरिमसमय, विहिणा पडिवज्जएऽणसणं ॥ ३४ ॥ सो सुहभाववसुप्पन्नओहिनाणेण लवणजलहिम्मि । उत्तरवज्जदिसासु, नियइ पुढो जोयणसहस्सं ॥ ३५॥ उत्तरओ हिमवंतं, हिट्ठा रयणाइ लोलुयं नस्यं । चुलसीवाससहस्सद्विइयं जाणेइ पासेइ ॥ ३६॥ इत्तो य मजमत्ता, सा पावा रेवई तहिं पत्ता । उवसग्गिउं पवत्ता, दुस्सहरागम्गिसंतत्ता ॥ ३७॥ तो किमियमेरिसी ? इय, वियफमाणेण ओहिनाणेण । नायं तीसे सयलं, चरियं तह नरयगामित्त ॥३८॥
तत्र महाशतककथा.
| ॥१४९॥
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