Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad

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Page 322
________________ ता परगेहे गेहे, अणज्जवयणिज्जयाइदोसाण । गुरुकज्जेवि कयावि हु, एगागी नेव वच्चिस्सं ॥ ५८॥ इय चिंतिय भणइ अर्ह, इन्भ ! तुमं पिव न किंपि जाणेमि । सो आह न छुट्टिज्जइ, एरिसवयणेहि धणमित्त !॥ ५९॥ काउं ववहारं राउले वि तं लेमि तुह सयासाओ। इयरो वि पडिभणेई, जं जुत्तं कुणसु तं इन्भ!॥६॥ तो धणमित्तो चोरु, ति साहिओ निवइणो सुमित्तेण । न इमं इमम्मि संभवइ, कहवि इय चिंतइ निकोवि ॥ ६१॥ एस पुण निच्छएणं, कहेइ ता पुच्छिमो तयं चैव । अह हक्कारिय पुट्ठो, धणमित्तो कहइ जहवित्तं ॥ २॥ पभणइ निवोवि विम्हियहियओ भो इब्भ ! किमिह कायव्वं । सो आह देव! इमिणा, गहिया रयणावली नूणं ॥६३॥ अह जंपइ धणमित्तो, देव ! कलंक इमं न हु सहेमि । पभणेह जेण दिव्वेण, तेणिमं पत्तियावेमि ॥ ६४ ॥ भणइ निवो इब्भ ! तुम, होसु सिरे जं गहेइ फालमिमो । आमंति तेण भणिए, ठविओ दिवसो तओ रण्णा ॥६५॥ सगिहेसु दोवि पत्ता, अह धणमित्तो विसेसधम्मपरो। चिट्ठइ सुविसुद्धमणो, पत्ते ? पुण दिव्वदिवसम्मि ॥६६॥ काउ सिणाणं अट्ठप्पयारपूयाइ पूइऊण जिणे । तह काउ काउसग्गं, सम्मदिट्ठीण देवाणं ॥६७॥ फाले धमिज्जमाणे, पुरो निविहे निवम्मि लोए य । बहुपउरजुओ पत्तो, धणमित्तो दिव्वठाणम्मि ॥६८॥ इन्भो वि तत्थ पत्तो, धणमित्तो जाव गिहिही फालं । इब्भस्स उट्टियाओ, पडिया रयणावली ताव ।। ६९॥ तो भणियं नरवडणा, इब्भ ! किमेयं ? ति सो वि खुद्धमणो । जा देइ उत्तरं न हु, ता पुट्ठो तेण धणमित्तो ॥७॥ जीइ रयणावलीए, कए विवाओ तुमाण सा किमियं । होइ ? न वति इमो वि हु, जंपइ सा चेव देव ! इमा ॥७॥ Jain Education ! For Private Personel Use Only Milinelibrary.org

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