Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad

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Page 319
________________ श्रीधर्मरत्नप्रकरणम् परगृहप्रवे शवर्जनरूपं शीलम् ॥१४॥ KKKREEKEEEEEEEEEEXXXXXX तो सव्वपयत्तेणं, ओलग्गं कुणइ निवइपभिईणं । तहवि तदपुण्णक्सओ, न तेवि किंपि हु पसीयंति ॥ १६ ॥ एवं दुहं सहतो, परिभमिरो महियले कयावि इमो। केवलकलियं गुणसायरं गुरुं गयउरे नियइ ॥ १७॥ संजायकम्मविवरो, बहुबहुमाणेण नमइ गुरुचरणे । तो कहइ मुणिवरो तस्स, समुचियं धम्मकहमेवं ॥१८॥ धम्मेण धणसमिद्धी, जम्मो धम्मेण उत्तमकुलम्मि । धम्मेण दीहमाउं, धम्मेण उदग्गमारुग्गं ॥ १९॥ सयलचउजलहिवलयम्मि निम्मला ममइ धम्मओ कित्ती । हसियरइरमणरूवं, रूवं धम्माउ इह होइ ॥२०॥ जं भुजंति सुहाई, मणिरयणपहापहासियदिसेसु । भवणेसु भवणवइणो, तं सव्वं धम्ममाहप्पं ॥ २१ ॥ जं हरिसभरुन्भंत, निवचक्कं चक्किणो नमइ चलणे । तं सुद्धधम्मकप्पद्रुमस्स कुसुमुग्गमं मण्णे ॥ २२ ॥ सरहससुरसुंदरिकरचालियचलचारुचामरुप्पीलो । सुरलोए सुरनाहो, हवेइ धम्मप्पभावेणं ॥ २३॥ किं बहुणा भणिएण, धम्मेण हवंति सयलसिद्धीओ। धम्मेण विमुक्काण उ, जियाण न कयावि फलसिद्धी ॥२४॥ तं सोउं धणमित्तो, कयंजली जंपए नमिय सूरिं । एवमिणं मुणिपुंगव !, जं तुम्भेहिं समाइ8 ॥ २५ ॥ जम्माउ वि मह दुक्ख, मुणह च्चिय पहु! तुमे सनाणेण । को हेऊ पुण इहयं ?, तो कहइ गुरू सुणसु भद्द ! ॥२६॥ इह भरहे विजयपुरम्मि, गंगदत्तु त्ति गिहवई आसि । मगहा से दइया सो, उ धम्मनामपि न हु मुणइ ॥ २७ ॥ धम्मकरणुज्जुयाणं, अन्नेसि पि हु करेइ बहुविग्धे । मच्छरभरिओ कस्सवि, लाभं न हु सक्कए दटुं ॥ २८ ॥ जइ पुण कहंपि से पिच्छिरस्स ववहरइ कोइ बहुलाभं । एइ जरो सत्तमुहेहि, तस्स इय वासरा जंति ॥ २९ ॥ EXEEEEEEXXXXBF तत्र धनमिवचरित्रम् ॥१४॥ Jain Education International For Private & Personel Use Only www.jainelibrary.org

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