Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
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श्रीधर्मरत्न प्रकरणम्
आयतनसेवाख्यं शीलम्
॥१३६॥
नाऊण असारत्तं, भवस्स नीसेसदुक्खपभवस्स । मुक्खं च महासुक्ख, सज्झं चारित्तधम्मस्स ॥ १३ ॥ संवेगभाविओ तो, थावच्चानंदणो जिणं भणइ । आपुच्छिऊण जणणिं, पहुपासे पव्वइस्सामि ॥ १४ ॥ . जुत्तमिणं ति जिणेणं, भणिए गंतूण मंदिरे जणणिं । विष्णवइ पायवडिओ, अम्मो ! गिहामि पव्वज्जं ॥१५॥ सा वि हु सिणेहमूढा, रुयमाणी भणइ दुक्करा सुटु । अन्नस्सवि पव्वज्जा, विसेसओ तुज्झ सुहियस्स ॥ १६ ॥ आसालग्गं कह मुंचसे ममं पुत्त ! निठुरो होउं । बत्तीसं भज्जाओ, इमाउ तह विणयसज्जाओ ? ॥ १७॥ दाणोवभोगकज्जे, पज्जत्तं कुलकमागयं रित्थं । पुव्वसुकरण पत्तं, विलससु ता दाणधम्मरओ॥१८॥ वड्डियकुलसंताणो, वयपरिणामे करिज्ज हियमहूँ। सो भणइ अणिच्चे जीवियम्मि न य एरिसं घडइ ॥ १९ ॥
___ अवि यअन्नह परिचिंतिज्जइ, सहरिसऽकंडुज्जएण हियएण । परिणमइ अन्नह च्चिय, कज्जारंभो विहिवसेण ॥ २०॥ एमाइउत्तिपडिउत्तिभावणासुठुनिच्छिउच्छाहं । कलिऊणं थावच्चा, अणुमन्नइ तं अकामावि ॥ २१॥ गंतुं केसवमूलं, कहेइ सयलंपि पुत्तवुत्तंतं । मग्गेइ रायचिंधे, दिक्खामहिमाकरणहेउं ॥ २२ । तुट्ठो भणेइ कण्हो, धन्नो सो जस्स निच्छओ धम्मे । तो चिट्ठ निव्वुया तं, दिक्खामहिम अहं काहं ॥ २३॥ गंतूण य तग्गेहं, तीसे पुत्तं सयं भणइ कण्हो । भुंजसु वच्छ ! सुहाई, भिक्खायरिया महादुक्खा ॥२४॥ सो पडिभणेइ सामिय !, भयाभिभूयाण केरिसं सुक्खं ?। ता सव्वभयपणासी, धम्मु चिय जुज्जए काउं ॥२५॥
तत्र सुदर्श नकथा।
॥१३६॥
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