Book Title: Dharmratna Prakaranam
Author(s): Punyavijay
Publisher: Sarabhai Manilal Nawab Ahmedabad
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श्रीधर्मरत्न
प्रकरणम्
आयतनसेवाख्यं शीलम्
॥१३७॥
पयडियमुणिजणकप्पो, जयनित्थारणपहाणसंकप्पो। हेलाइ हणियदप्पो, निजिणियसदप्पकंदप्पो ॥ ३७॥ चंदुज्जलचारित्तो, पसन्नचित्तो कयावि विहरतो। सो थावच्चापुत्तो, नयरिं सोगंधियं पत्तो ॥३८॥ अहमहमिगाइ गुरुचरणनमणहेउं पुरीजणो नीइ । तं द? कोउगेणं, सिट्ठी वि सुदंसणो चलिओ॥३९॥ रयणत्तयआययणं, भवतरुमुसुमूरणे महाकरिणं । मिच्छत्ततिमिरअरुणं, सो तुट्ठो नमइ मुणिरयणं ॥४०॥ तत्तो सुदंसणस्स य, तीसे य महालियाइ परिसाए । उद्दामगुहिरसई, एवं सूरी कहइ धम्मं ॥४१॥ भव्वा ! जइ भव्वपयं, इच्छह सेवेह तो सयाऽऽययणं । आययणं पुण साहू, पंचविहाचारसंपन्ना ॥ ४२ ॥ आययणसेवणाओ, वर्ल्डति गुणा तरुव्व जलसित्ता । विहडेइ दोसजालं, सीयं पिव सूरकिरणहयं ॥ ४३ ॥ इय सुणिय भणइ सिट्ठी, तुम्भं धम्मो भयंत ! किंमूलो। भणइ गुरू णे धम्मो, सुदंसणा! विणयमूलु ति ॥४४॥ सो पुण विणओ दुविहो, अगारिविणओऽणगारिविणओ य । बारसवयाई पढमे, महव्वयाई च बीयम्मि ॥४५॥ तुम्हं सुदंसणा! पुण, धम्मो किंमूलओ स पच्चाह । अम्हाण सोयमूलो, सग्गफलो सो अविग्घेण ॥ ४६॥ तो भणइ गुरू जीवो, पाणिवहाइहि मइलिओ धणियं । कह तेहि चिय सुज्झइ, रुहिरेण य रुहिरकयवत्थं ॥४७॥
इय सोउं पडिबुद्धो, देसणमूलं सुदंसणो तुट्ठो। गिण्हइ गिहत्थधम्म, पालइ सयकालमकलंकं ॥४८॥ तए णं सुयपरिवायगस्स इमीसे कहाए लद्धट्ठस्स समाणस्स अयमेयारूवे अज्झथिए समुप्पज्जित्था-एवं खलु सुदंसणो सोय- मूले धम्मे विप्पजहाय विणयमूले धम्मे पडिवन्नो, तं सेयं खलु मम सुदंसणस्स दिहि वामित्तए पुणरवि सोयमूले धम्मे आपवित्तए
तत्र सुदर्श
नकथा।
॥१३७॥
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